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मोक्षमार्ग की पूर्णता उत्तर - पर्याय मात्र क्षणध्वंसी/एक समयवर्ती ही होती है - ऐसा समझना यथार्थ है। सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा से प्रत्येक पर्याय एक समयवर्ती ही होती है; किन्तु इस नय की अपेक्षा से व्यवहार नहीं चलता। ___ चर्चा के लिए अथवा समझने-समझाने के लिए एक समयवर्ती सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय के विषय का कुछ लाभ नहीं है। इसलिए स्थूल ऋजुसूत्रनय का प्रयोग किया जाता है। हम मनुष्य हैं यह भी स्थूल ऋजुसूत्र नय का विषय है।
अनादि-अनन्त पर्याय भी पर्यायार्थिक नय का विषय है। जैसे - आलापपद्धति शास्त्र में अनादि-अनन्त पर्यायार्थिक नय के विषय का उदाहरण मेरूपर्वत दिया है।' ___ यहाँ मेरूपर्वत पुद्गलद्रव्य की समान जातीय स्कन्धरूप पर्याय है; किन्तु वह पर्याय होते हुए भी अनादि से है और अनन्त काल पर्यंत सामान्य रूप से वैसी ही रहनेवाली है "फिर भी उनमें से कितने ही परमाणु भिन्न होते हैं, कितने ही नये मिलते हैं। इसप्रकार मिलनाबिछुड़ना होता रहता है।" (मो. प्र. पृष्ठ २२)। अकृत्रिम जिनबिम्ब, समुद्र, पर्वत, द्वीप आदि को भी यहाँ अनादि-अनंत पर्यायरूप ही समझना चाहिए।
वास्तविकरूप से विचार किया जाय तो प्रत्येक द्रव्य की पर्याय एक समयवर्ती ही होती है। पर्याय को दो आदिसमयवर्ती कहना उपचार है।
इसलिए इस कृति में जहाँ-जहाँ मिथ्यादर्शन, सम्यग्दर्शन, मोक्षमार्ग, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र आदि पर्यायों का प्रयोग किया जायेगा, उसे मात्र एक समयवर्ती पर्याय नहीं समझना। सादृश्य प्रवाहक्रम के कारण कम से कम एक अन्तर्मुहूर्त काल की पर्याय का तो स्वीकार करना आवश्यक है ही।
मोक्ष अर्थात् सिद्ध पर्याय को भी सादि-अनंत समझना आवश्यक है। १. सूत्र-५८, अनादिनित्यपर्यायार्थिको यथा पुद्गलपर्यायो नित्यो मेर्वादिः।