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मोक्षमार्ग की पूर्णता यद्यपि सम्यक्त्व में चल, मल, अगाढ़ दोष तो हैं; तथापि सम्यक्त्वरूप यथार्थ आत्मश्रद्धान में अधूरापन नहीं है।
इस विषय के यथार्थ ज्ञान हेतु शास्त्राधाररूप में धवला पुस्तक पहला, पृष्ठ ३९७ से ४०० पर्यंत के हिन्दी अनुवाद का अंशनीचे देरहे हैं__“अब सम्यक्त्वमार्गणा के अनुवाद से जीवों के अस्तित्व के प्रतिपादन करने के लिये सूत्र कहते हैं -
सम्यक्त्वमार्गणा के अनुवाद से सम्यग्दृष्टि-क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव होते हैं।
जिसप्रकार आम्रवन के भीतर रहनेवाले नीम के वृक्षों को आम्रवन यह संज्ञा प्राप्त हो जाती है, उसीप्रकार मिथ्यात्व आदि को सम्यक्त्व यह संज्ञा देना उचित ही है। शेष कथन सुगम है। कहा भी है -
जिनेन्द्रदेव द्वारा उपदिष्ट छह द्रव्य, पाँच अस्तिकाय और नव पदार्थों का आज्ञा अथवा अधिगम से श्रद्धान करने को सम्यक्त्व कहते हैं।।212॥
दर्शनमोहनीय कर्म के सर्वथा क्षय हो जाने पर जो निर्मल श्रद्धान होता है, वह क्षायिक सम्यक्त्व है; जो नित्य है और कर्मों के क्षपण का कारण है।
श्रद्धान को भ्रष्ट करनेवाले वचन या हेतुओं से अथवा इन्द्रियों को भय उत्पन्न करनेवाले आकारों से या वीभत्स अर्थात् निन्दित पदार्थों के देखने से उत्पन्न हुई ग्लानि से, किंबहुना तीन लोक से भी वह क्षायिक सम्यग्दर्शन चलायमान नहीं होता है।।२१४॥
सम्यक्त्वमोहनीय प्रकृति के उदय से पदार्थों का जो चल, मलिन और अगाढ़रूप श्रद्धान होता है, उसको वेदक सम्यग्दर्शन कहते हैं - ऐसा हे शिष्य ! तू समझ।