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मोक्षमार्ग की पूर्णता
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७. प्रश्न – फिर आप विद्यमान अनन्त गुण और उनके अनन्तानन्त कार्य की चर्चा क्यों नहीं करते ? मात्र तीन गुणों की ही चर्चा क्यों कर रहे हैं ?
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उत्तर - अल्पज्ञता के कारण हमें अनन्त गुणों का ज्ञान नहीं हो सकता । अनन्त गुणों को जानने का कार्य तो केवलज्ञान से ही हो सकता है।
मति-श्रुतरूप अल्पज्ञान से हम मर्यादित गुणों को ही जान सकते हैं। उन मर्यादित गुणों में भी जिनसे हमारा मोक्षमार्ग का मूल प्रयोजन सिद्ध हो, उन गुणों की ही हम यहाँ चर्चा कर रहे हैं।
८. प्रश्न द्रव्य में अनन्त गुणों का रहना और उनका अलगअलग कार्य होना • यह मात्र क्या जीवद्रव्य में ही होता है? या अन्य पुद्गलादि अजीव द्रव्यों में भी होता है ?
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उत्तर - हाँ ! पुद्गलादि सभी द्रव्यों में यह कार्य निरन्तर अवश्य होता ही रहता है; तथापि उनसे हमारा किसी भी प्रकार से मोक्षमार्ग का प्रयोजन सिद्ध न होने से यहाँ उन पुद्गलादि द्रव्यों की तथा उनमें विद्यमान अनंतगुणों की चर्चा हमें अपेक्षित नहीं है, वे द्रव्य एवं उनके गुण यहाँ गौण हैं । तथापि जिज्ञासु पाठकों के हितार्थ संक्षेप में उसका स्वरूप निम्नानुसार हम दे रहे है -
पुद्गल में स्पर्श, रस, गंध, वर्ण इत्यादि अनन्त विशेष गुण रहते हैं और उनका अपना-अपना, अलग-अलग कार्य भी चलता ही रहता है।
जैसे - कच्चा आम एक पुद्गल पिण्ड है। उस आम में स्पर्श, रस, गंध और वर्ण आदि विशेष गुण हैं। स्पर्श गुण में जिस समय कठोरता से कोमलता का परिणमनरूप कार्य हो रहा है; उसीसमय उस कच्चे आम का हरा वर्ण भी धीरे-धीरे पीत वर्ण में बदल रहा है। उसीसमय उसी कच्चे आम का खट्टा रस भी मधुरता में परिणम रहा है।
यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि स्पर्श गुण में परिणमन हो रहा है, इसलिए रस गुण भी परिणम रहा हो - ऐसा नहीं है; अपितु इन स्पर्शादि