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खण्ड
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lal वीनी अरजी । अव कहो थारी मरजी । नारी पुत्र तय फरमाये ॥ पूर्व ॥७॥ कीजे आपकी
जे इच्छा । हम तिणने नहीं करां मिच्छा । करो जिम सहू सुख पावे ॥ पूर्व ॥ ८॥
इम सुणी सेठजी हरख्या । सज्जन गुण वक्ते परख्या । देवी कह्यो जिम करावे ॥ पूर्व E॥ ९॥ घणा गैणा दे बहुवां ताइ । पीयरी ये दी पहोंचाइ । फिर मुनीमने बोलावे ॥ P पूर्व ॥ १० ॥ हम सहू देशाटन जाणं । पर देशे फिरी पाछा आवां । घणा दिन वीतसी
दावे ॥ पूर्व ॥ ११ ॥ थांरो पूरो विश्वास आणी । घरकी मालकी करां थाणी । इम कही सह भोलावे ॥ पूर्व ॥ १२ ॥ पाछली राते निकलवा तणो। संकेत कियो सह सज्जनो। एकही ठिकाणे पोडावे ॥ पूर्व ॥ १३ ॥ गर्गा मुहूर्त जब आयो। धन्न घणो लेइ साथ मांयो। पंच पर्मेष्टी समरावे ॥ पूर्व ॥ १४ ॥ चाल्या मन मानी दिशा मांडाई जीव
तिण बेलाइ । घर धन सज्जन छिटकावे ॥ पूर्व ॥ १५॥ गामांतरे जाइ रहिया। भोजन मकर सुखे सोइया । राते चोर धन लेजावे । पूर्व ॥ १६ ॥ जागी देख्यो धन नहीं पायो ।
मनमें पस्तावो घणो आयो । सुरी वयणथी धीरज लावे ॥ पूर्व ॥ १७ ॥जो घरके
मांही रहता । तो सर्व गमाइ दुःख सहता । इणी परे मन समजावो ॥ पूर्व ॥ १८ ॥ पाइतामें तडको थाया । संतोष कर इम रहिया। आगे गमन सहू करावे ॥ पूर्व ॥१९॥