Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो७ ७. सुगम * तेण परमपडिसिद्धम् । $८. सुगम
* एदेण अट्ठपदेण अणुभागुदीरणा दुविहा-मूलपयडिअणुभागउदीरणा च उत्तरपयडिअणुभागउदीरणा च ।
६९. एदेणाणंतरपरूविदेण अद्रुपदेण जा अणुभागउदीरणा अहिकीरदे सा दुविहा होइ मूलुत्तरपयडिविसयाणुभागुदीरणाभेदेण । तत्थ ताव मूलपयडिअणुभागुदीरणा पुव्वं विहासियव्वा त्ति परूवणमुत्तरसुत्तमाह
* एत्थ मूलपयडिअणुभागउदीरणा भाणियब्वा।।
६ १०. संखेवरुइसत्ताणुग्गहट्टमेदं सुत्तं पयट्टं । तदो एदस्स वित्थारपरूवणमुच्चारणाइरियोवएसबलेण पयासहस्सामो । सं जहा-मूलपयडिअणुभागुदीरणाए तत्थ इमाणि तेवीसमणियोगद्दाराणि-सण्णा सव्वुदीरणा जाव अप्पाबहुए त्ति । भुजगारो पदणिक्खेवो वड्डिउदीरणा चेदि ।
११. तत्थ सण्णा दुविहा-घादिसण्णा ठाणसण्णा च । घादिसण्णा दुविहा-जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क०
$ ७. यह सूत्र सुगम है। * उससे आगे प्रतिषेध नहीं है। $ ८. यह सूत्र सुगम है।
* इस अर्थपदके अनुसार अनुभाग उदीरणा दो प्रकारकी है-मूल प्रकृति अनुभाग उदीरणा और उत्तर प्रकृति अनुभाग उदीरणा । ..
९. पूर्व में कथित इस अर्थपदके द्वारा जो अनुभाग उदीरणा अधिकृत की गई है वह मूल और उत्तर प्रकृतिविषयक अनुभाग उदीरणाके भेदसे दो प्रकारकी है। उसमें सर्वप्रथम मूल प्रकृति अनुभाग उदीरणाका व्याख्यान करना चाहिए इसका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं___* यहाँ मूल प्रकृति अनुभाग उदीरणा का व्याख्यान करना चाहिए ।
१०. संक्षेप रुचिवाले जीवोंका अनुग्रह करनेके लिए यह सूत्र प्रवृत्त हुआ है । इसलिए इसका विस्तारसे कथन करनेके लिए उच्चारणाचार्यके उपदेशके बलसे उसका प्रकाशन करते हैं । यथा-मूल प्रकृति अनुभाग उदीरणाके विषयमें ये २३ अनुयोगद्वार हैं-संज्ञासे लेकर अल्पबहुत्वतक तथा भुजगार, पदनिक्षेप और वृद्धि उदीरणा।
११. उनमें से संज्ञा दो प्रकार की है-घाति संज्ञा और स्थान संज्ञा। घातिसंज्ञा दो प्रकारकी है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्ट का प्रकरण है-निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और