Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण हैं, आठ प्रकृतिक बंधस्थान के स्वामी माने जाते हैं। आयु और मोहनीय कर्म के बिना शेष छह कर्मों का बन्ध केवल दशवें गुणस्थानसूक्ष्मसंपराय में होता है। अतः सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान वाले जीव छह प्रकृतिक बंधस्थान के स्वामी हैं। वेदनीय कर्म का बंध ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थान में होता है, अतः उक्त तीन गुणस्थान वाले जीव एक प्रकृतिक बंधस्थान के स्वामी हैं । ___इन बंधस्थानों का काल इस प्रकार है कि आठ प्रकृतिक बंधस्थान आयुकर्म के बंध के समय होता है और आयुकर्म का जघन्य व उत्कृष्ट बंधकाल अन्तर्मुहूर्त है। अतः आठ प्रकृतिक बंधस्थान का . जघन्य व उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण जानना चाहिए। ___ सात प्रकृतिक बंधस्थान का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है। क्योंकि जो अप्रमत्तसंयत जीव आठ मूल प्रकृतियों का बन्ध करके सात प्रकृतियों के बंध का प्रारम्भ करता है, वह यदि उपशम श्रेणि पर आरोहण करके अन्तर्मुहूर्त काल में सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान को प्राप्त हो जाता है तो उसके सात प्रकृतिक बंधस्थान का जघन्य काल अन्तर्महूर्त होता है। इसका कारण यह है कि सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में छह प्रकृतिक स्थान का बंध होने लगता है तथा सात प्रकृतिक बंधस्थान
१ छसु सगविहमठविहं कम्मं बंधंति तिसु य सत्तविहं ।
छविहमेकट्ठाणे तिसु एक्कमबंधगो एक्को ॥-गो० कर्मकाण्ड ४५२ -मिश्र गुणस्थान के बिना अप्रमत्त गुणस्थान पर्यन्त छह गुणस्थानों में जीव आयु के बिना सात और आयु सहित आठ प्रकार के कर्मों को बाँधते हैं । मिश्र, अपूर्वकरण और अनिवृत्ति करण इन तीन गुणस्थानों में आयु के बिना सात प्रकार के ही कर्म बाँधते हैं। सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में आयु मोह के बिना छह प्रकार के कर्मों का बन्ध होता है। उपशान्तकषाय आदि तीन गुणस्थानों में एक वेदनीयकर्म का ही बन्ध होता है और अयोगि गुणस्थान बन्धरहित है अर्थात् उसमें किसी प्रकृति का बन्ध नहीं होता है।
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