Book Title: Karananuyoga Part 2 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 10
________________ सान्त है और विशेष की अपेक्षा भव्य अभव्य दोनों के प्रतिसमय कर्मबन्ध होता है और अपनी स्थिति के अनुसार कर्मों की निर्जरा होती रहती है इसलिये सादि-सान्त है। ७. प्रश्न : उपादान कारण किसे कहते हैं ? उत्तर : जो कार्यस्लप परिणत हो उसे उपादान कारण कहते हैं | जैसे रोटी रूप परिणमन करने से आटा रोटी का उपादान कारण है। प्रश्न : निमित्त कारण किसे कहते हैं ? उत्तर : जो उपादान को कार्य रूप परिणमन करने में सहायक हो उसे निमित्त कारण कहते हैं। जैसे आटा के रोटी रूप परिणमन करने में अग्नि, पानी, चकला, बेलन तथा बनाने वाला व्यक्ति। ६. प्रश्न : निमित्त कारण के कितने भेद हैं ? उत्तर : निमित्त कारण के दो भेद हैं - १. अन्तरङ्ग निमित्त और २. बहिरंग निमित्त । १०. प्रश्न : अंतरंग निमित्त किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके होने पर उपादान में कार्यरूप परिणमन नियम से होता है उसे अन्तरङ्ग निमित्त कहते हैं जैसे भव्य जीव केPage Navigation
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