Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 8
________________ ४. प्रश्न : कर्म दिखाई नहीं देते फिर इनका अस्तित्व कैसे जाना जावे ? उत्तर : कर्म हैं तो पुद्गल द्रव्य तथा रूप, रस, गन्ध और स्पर्श सहित हैं परन्तु उनका सूक्ष्म परिणमन होने से वे दिखाई नहीं देते। फिर भी जीवों की ज्ञानी-अज्ञानी, दरिद्रता-सधनता, सबलता और निर्बलता आदि विषम दशाओं को देखकर कर्मों का अनुमान किया जाता है ? प्रश्न : जीव में रागादिक भाव क्यों होते हैं और कब से होते हैं ? उत्तर : जीव और पुद्गल द्रव्य में एक वैभाविक शक्ति होती है; उस शक्ति के कारण जीव में रागादिरूप परिणमन करने की योग्यता है और पुद्गल द्रव्य में कर्मरूप परिणमन करने की योग्यता है । इस योग्यता के कारण कर्मोदय का निमित्त पाकर जीव में रागादिक भाव उत्पन्न होते हैं और पुद्गल द्रव्य में कर्मरूप परिणमन होता है। जीव का यह रागादिरूप परिणमन अनादिकाल से चला आ रहा है और पुद्गल द्रव्य का कर्मरूप परिणमन भी अनादिकाल से चला आ रहा है। जीव के रागादिक मावों का उपादान

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