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२. प्रश्न : कार्मण वर्गणा किसे कहते हैं ? उत्तरः कार्मण वर्गणा, पुद्गल द्रव्य की वह जाति है जिसमें ,
कर्मरूप परिणामन करने की योग्यता है ! ये कार्मण वर्गम के परमाणु समस्त लोक में व्याप्त हैं और जीव के प्रत्येक प्रदेश के साथ संलग्न हैं। जब जीव में राग द्वेषादि ! विकारी भाव होते हैं तब कार्मण वर्गणा के परमाणु कर्मरूप हो जाते हैं और उनमें स्थिति तथा फल देने की
शक्ति उत्पन्न हो जाती है। यही बन्ध कहलाता है। ३. प्रश्न : कर्मबंध कब से चला आ रहा है ? उत्तर : जिस प्रकार खान में रहने वाले सुवर्ण- कणों के साथ
किट-कालिमा का सम्बन्ध अनादिकाल से है उसी प्रकार जीव के साथ कर्मों का सम्बन्ध अनादिकाल से चला आ' रहा है।
१, राजवार्तिक में कहा भी है कि प्रत्येक आत्मा के प्रत्येक प्रदेश पर ज्ञानावरणादि कमों के अनंतानंत प्रदेश हैं। फिर एक-एक कर्म-प्रदेश पर
औदारिक आदि शरीरों के अनन्तानन्त प्रदेश (परमाण) हैं। फिर एक-एक शरीर सम्बन्धी प्रदेश पर अनन्तानंत विनसोपचय हैं, जो गीले गुड़ पर रेत आदि के संचय के समान स्थित हैं। (रा.वा.५/८/१६/४५१)