Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ 540 जीतकल्प सभाष्य एतेसु चेव पुढवादि.... एतेसु जहुद्दिढे एतेसु जहुद्दिट्ठो एतेसु धीरपुरिसा एते सोलसदारा एतेहिं कारणेहिं एतेहिं ठाणेहिं एतेहिं दोसेहिं एतेहि कारणेहिं एतेहि व कज्जेहिं एत्तो उ पओगमती एत्तो एगतरेणं एत्तो किणावि हीणं एत्थ उ दाण चतुत्थ एत्थं इमम्मि जीते एत्थं चतुभंग भवे एत्थं पुण अधिगारो एत्थं मासगुरुं तू एत्थं सुहुमा तु इमा एत्थ तु ततियचतुत्था एत्थ तु मासलहुं तू एत्थ तु विसरिसदाणं एत्थ पुण बहुतरा भिक्खुणो एत्थ य पट्ठवणं पति एत्थ वि चउलहुगा तू एत्थ वि तहेव जाणण एत्थ वि ते च्चिय भंगा एमादिणिमित्तेहिं एमादि मायपिंडो एमादियं तु बहुसो एमादी अणुकूले एमादी असढो जं 1542 एमादी आवण्णे 1708 एमादीओ एसो 1691 एमादीजोगेहिं 661 / एमादी णेहाऊ 1097 एमादी विणयं तू 1663 एमादीहि बहुविधं 1893 एमेव आउ-तेऊ 2077 एमेव कवाडम्मि वि 508 एमेव दंसणम्मि वि 757 एमेव माहणेसु वि 192 एमेव य अणवटुं 355 एमेव य इत्थीए 1624 एमेव य किंचि पदं 1557 एमेव य दसरायं 2198 एमेव य पारोक्खी 1513 एमेव य पुरिसेसु वि 2517 | एमेव य बीयाई 1207 एमेव य मीसा वी 1226 एमेव य रुक्खे वी 1641 एमेव य समणीणं 1273 एमेव य साहरिते 1581 एमेवुक्कोसादी 73 एयं चिय सामण्णं 2263 | एयं पुण पच्छित्तं 1268 | एयगुणसंपउत्तो 1153 एयगुणसमग्गस्स तु 849,855 एयण्णतरागाढे 2406 | एरिसगा जे पुरिसा 1411 एरिसगे आगाढे 947 | एरिसजतणाजुत्ता 1381 एरिसमायासहिते 967 एवं अत्थादाणे 943 686 1467 920. 877 554 1522 1266 419 1370 2218 2343 2036 2239 273 1429 1959 2246 1958 2251 1710 1858 51 706 2552 2197 615 667 2387 953 1777 2413

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