Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 830
________________ 636 जीतकल्प सभाष्य. 418 पडिसेवति विगतीओं नि 3869, | 155 परिणिट्ठित परिण्णात व्य 4075 . व्य 4305 | 183 परिणिव्वविया वाए व्य 4102 2568 पडिहाररूवी! भण रायरूवी बृ 5047, 1096 परियट्टिए अभिहडे नि 3251, व्य 1220 पिनि ५९,बृ 4276 2000 पढमगभंगे वज्जो नि 2499, बृ 6383 | 2112 परिहारकप्पं वोच्छामि बृ६४४७ 427 पढम-बितिएसु कप्पे नि 3877, | 288 परिहारविसुद्धीए . व्य 4191 व्य 4314 | 2069 परिहारविसुद्धीणं पंक 2561 556 पढमम्मि य संघयणे नि 3948, | 2150 परिहारिगा वि छम्मासे बृ६४७४ प्रकी 1283, व्य 4401 | 2187 पलंबाउ जाव ठिती . बृ६४८७ 174 पढमादीसंघयणो व्य 4094 | 1772 पल्हवि कोयवि पावार / नि 4002, 115 पणगं मासविवड्डी व्य 4040 प्रसा 678 2076 पण्णरसुग्गमदोसा पंक 2568 / 660 / पवयणजसंसि पुरिसे व्य 4508 268 पण्णवगस्स तु सपदं व्य 4175 | 414 पव्वज्जादी आलोयणा नि 3866, 1968 पतिट्ठा ठवणा ठवणी बृ 6356 व्य 4302 1144 पत्तेयबुद्ध णिण्हग पिनि 73/21 | 323 पव्वज्जादी काउं नि 3812, व्य 4223 581 पदमक्खरमुद्देसं व्य 4454 | 512 पव्वज्जादी काउं , व्य 4391 2141 पमाण कप्पट्ठितो तत्थ बृ६४६९ | 516 / पव्वज्जादी काउंनि 3940 882 पयला उल्ले मरुगे नि 298, 882, 1375 पाएण देति लोगो नि 4425, बृ६०६६ पिनि 210/3 884 पयलासि किं दिवा ण पय.... नि 300, 430 पाणगजोग्गाहारे नि 3880, व्य 4317 बृ६०६८ | 390 पाणगादीणि जोग्गाणि नि 3850, 1121 परकम्ममत्तकम्मी... पिनि 67/2 व्य 4283 1156 परपक्खो तु गिहत्थो पिनि 81 | 2171 पाणिपडिग्गहिता तू पंक 1449 1169 परपच्चइया छाया पिनि 80/2/ 321 पादोवगमे इंगिणि व्य 4221 2351 परधम्मिया वि दुविधा बृ५०८८ | 322 पादोवगमे इंगिणि व्य 4222 187 परवाइण सिस्सेण व व्य 4106 / 656 पाबल्लेण उवेच्च उ व्य 4504 1262 परस्स तं देति सए व गेहे पिनि 163/4 | 315 पायच्छित्ते असंतम्मि नि 6678, 1949 परिणमति जहत्थेणं बृ 796 | ___पंक 2312, व्य 4215 579 परिणामगो हु तत्थ वि व्य 4452 | 1239 पायोकरणं दुविधं तु.पिनि 137 1942 परिणामा ऽपरिणामा तु. बृ 792 | 258 पारगमपारगंवा व्य 4167

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