Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________ निरुक्त : परि-६ 655 (जीचू पृ.८) (गा. 2591) (गा.७०४) (जीचू पृ. 4) (गा.७३२) (गा. 809) (जीचूवि पृ. 34) गुरु-गुरु। गिणाति सत्थमिति गुरू। जीतकप्प-जीतकल्प। जीतस्स तस्स कप्पो, एत्थं जो जीतकप्पो सो। जीव-जीव। अहवा जीवति जीविस्सई य जीवं ति होति जिओ। * जीवेइ वा तिविहे वि काले तेण जीयं। जोग-योग। जं जीवे मुंजयती, पेरयती वा ततो जोगा णिक्खेव-निक्षेप। अहिउक्खेवो तु णिक्खेवो। त्यक्तकृत्य-त्यक्तकृत्य। त्यक्तं कृत्यं करणीयं येन स त्यक्तकृत्यः। दुच्चिंतित-दुश्चिन्तित। दु त्ति दुगुंछा धातू, संजमउवरोधि कुच्छितं होति। तं मणसा जदि चिंतित, दुच्चिंतित एव णातव्वं // धाती-धात्री, धाय। धारयति धीयते वा, धयंति वा तमिति तेण धाती तु। निव्वाणंग-निर्वाणाङ्ग। नेव्वाणं गमयतीति निव्वाणंगं। पच्चक्ख--प्रत्यक्ष। जीवो अक्खो तं पति, जं वट्टति तं तु होति पच्चक्खं / पर्युषण-पर्युषण। परि-सर्वथा वसनमेकत्रनिवासः स निरुक्तविधिना पर्युषणम्। परिहार-परिहार, छोड़ना। परिहरणं परिहारो। पवयण-प्रवचन। पवत्तयतीई नाणादी पवयणं तेणं। . * पगय-वयणं ति वा पहाण-वयणं ति वा पसत्थ-वयणं ति वा-पवयणं। * पवुच्चंति तेण जीवादयो पयत्था इति पवयणं। पायच्छित्त-प्रायश्चित्त / पावं छिंदति जम्हा, पायच्छित्तं ति भण्णते तेणं। * पाएण वावि चित्तं सोहइ अइयार-मल-मइलियं तेण पायच्छित्तं / पारंचिय–प्रायश्चित्त का भेद। अंचु गती-पूजणयो पारंचति गच्छती तु पारं तु। पारोक्ख-परोक्ष / परतो पुण अक्खस्सा, वटुंतं होति पारोक्खं। पासवण-प्रस्रवण, मूत्र। पायं सवती जम्हा, तम्हा तू होति पासवणं। * पस्सवति त्ति य तेणं पासवणं / प्रगत-प्राप्त। प्रकर्षण गतं स्थितं जीवादिवस्तुवाचकतयेति प्रगतम्। प्रलीन-जिसके क्रोध आदि नष्ट हो गए हों। पइ पइ लीणा उ होंति पल्लीणा।। * कोधादी वा पलयं, जेसि गता ते पलीणा तु। प्रवचन-प्रवचन। वक्तीति प्रवदतीति वा प्रवचनम्। * प्रतिष्ठावचनं वा प्रवचनम्। (गा. 945) (गा. 1321) (जीचू पृ. 1) (गा. 11) (जीचूवि पृ. 53) (गा. 2431) (गा.२) (जीचू पृ. 2) (जीचू पृ. 2) (गा.५) (जीचू पृ. 2) (गा.७२९) (गा.११) (गा. 987) (गा. 815) (जीचूवि पृ. 31) (गा.६६५) (जीचूवि पृ. 32)

Page Navigation
1 ... 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900