Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 855
________________ सूक्त-सुभाषित : परि-८ 661 1383 1465 1486 1597 1621 1632 1646 1648 * दाणं ण होति अफलं। * विणएण बहुफलयं। * सुत्तस्स अप्पमाणे, चरणाभावो ततो य मोक्खस्स। मोक्खाभावाओ चिय, पयत्तदिक्खा णिरत्था उ॥ * को कल्लाणं नेच्छति? * जावतियं भोत्तव्वं, साहूहिं जावणट्ठाए। •हिताहारा मिताहारा, अप्पाहारा य जे नरा। ण ते विजा तिगिच्छंति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा॥ * जह इंगाला जलिता, डहति जं तत्थ इंधणं पडितं / इह चिय रागिंगाला, डहति चरणिंधणं णियमा॥ * रागग्गीय पजलितो, भुंजतो फासुगं पि आहारं। णिद्दड्डिंगालणिभं, करेति चरणिंधणं खिप्पं * दोसग्गी वि जलंतो, अप्पत्तियधूमधूमियं चरणं। अंगारमेत्तसरिसं, जा ण भवति णिड्डहति ताव // * नत्थि छुहाएँ सरिसिया वियणा। * धम्मावस्सगजोगा, जेण ण हायंति तं कुज्जा। * पुरिसुत्तरिओ धम्मो, सव्वजिणाणं पि तित्थम्मि। * उस्सुत्तं ववहरेंतो, कम्मं बंधति चिक्कणं। संसारं च पवड्डेति, मोहणिज्ज व कुव्वती॥ * उम्मग्गदेसए मग्गदूसए मग्गविप्पडीवाए। परं मोहेण रंजेतो, महामोहं पकुव्वती॥ * गुरुसेवा तु पहाणा। * अप्पेण बहुं इच्छति, विसुद्धमालंबणो समणो। * इय सिद्धतरहस्सं, अप्पाहारं विणासेति। * मरेज्ज सह विज्जाए, काले णं आगते विदू। अपत्तं तु ण वाएज्जा, पत्तं च ण विमाणए॥ 1652 1659 1673 2016 2048 2049 2276 2388 2603 2604

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