Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 854
________________ 660 जीतकल्प सभाष्य 455 . . * कम्ममसंखेजभवं, खवेति अणुसमयमेव आउत्तो अण्णयरम्मि वि जोगे, काउस्सग्गे विसेसेणं // * कम्ममसंखेज्जभवं, खवेति अणुसमयमेव आउत्तो। अण्णयरम्मि वि जोगे, वेयावच्चे विसेसेणं॥ * कम्ममसंखेज्जभवं, खवेति अणुसमयमेव आउत्तो। अण्णयरम्म वि जोगे, विसेसतो उत्तिमट्ठम्मि॥ * परलोइए ण सक्का, साहेउं अप्पणो अटुं? * जिणवयणमप्पमेयं। णिउणं कण्णाहुतिं सुणेताणं॥ * आहाराओ रतणं, ण विज्जते उत्तमं अण्णं। * सरीरमुज्झितं जेण, को संगो तस्स भोयणे? * जह णाम असी कोसी, अण्णा कोसी असी वि खलु अण्णो। इय मे अण्णो देहो, अण्णो जीवो त्ति मण्णंति॥ * बल-वण्ण-रूवहेतुं, फासुगभोई वि होति अपसत्थो। किं पुण जो अविसुद्धं, णिसेवते वण्णमादट्ठा? / / * संवर-विणिज्जराओ मोक्खस्स पहो। * सामाइयमादीयं, सुतणाणं बिंदुसारपज्जंतं। तस्स वि सारो चरणं, चरणस्स वि होति णेव्वाणं॥ * जेव्वाणस्स अणंतर, चरणं चरणा अणंतरं णाणं। णाणविसुद्धीए पुण, चारित्तविसुद्धया होति॥ * चारित्तविसुद्धीए, णेव्वाणफलं तु पावती अचिरा। * समितिविसुद्धिणिमित्तं, अवस्स आलोयणं कुज्जा। * बहुं सुणेति कण्णेहिं, बहुं अच्छीहिं पेच्छति। ण य दिलै सुतं सव्वं, भिक्खु अक्खाउमरहति॥ * मरणमिति महब्भयं। * चरणविणासे अमोक्खो तु। * मोक्खाभावातो पुण, पयत्तदिक्खा निरत्थिगा होति। * बहुदोसे माणुस्से, मा सीद। 595 जीसू 2 714 715 716 823 926 1011 1012 1046

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