Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ 668 जीतकल्प सभाष्य / खुम्पक-वृष्टि को रोकने के लिए बनाया छाद-भूखा-छादो वेयावच्चं ण गया एक तृणमय उपकरण। जीचूवि पृ. 50 तरति काउं। गा. 1659 खेड्डा-क्रीड़ा। गा. 1723 | छिक्क-स्पृष्ट। गा. 1970 गड्ड-गर्त। गा. 819 छिच्छिक्कार-कुत्तों के पीछे की जाने गिल्ल-गीली, आर्द्र। गा. 1084 वाली छी छी की आवाज। गा.१३७७ गुलगुलेंत-हाथी का चिंघाड़ना। गा.८०१ | छिवाड़ी-पतले पन्नों वाली ऊंची गोज्ज-गायक। गा.६१४ पुस्तक। गा. 1770 गोट्टी-मित्र। छेलिय-नाक से छींकने की आवाज। गा. 1725 गोण-बैल। गा. 1377 छोडित-राई से बघारा हुआ घडा-गोष्ठी, मंडली। शाक आदि। . गा: 1166 घरकोइल-छिपकली। गा. 1267 जड्ड-हाथी। . गा. 1280 घुक्किय-अपमानजनक शब्द। गा. 838 जल्ल-मैल। गा.१०४० घुसुल-दही मथना, विलोड़न करना। गा. 1570 जीण-अश्व की पीठ पर बिछाया जाने चंगेरी-तृण निर्मित टोकरी। गा. 2399 वाला चर्ममय आसन-विराली चडकर-बहाना, आरोप। गा.८७० ___ नवओ जीणो त्ति भन्नइ। जीचूवि पृ. 51 चाउल-चावल। गा. 1165 जुंगित-जाति, कर्म या शरीर से हीन। गा. 1372 चिंचा-इमली। जीचू पृ. 16 झंख-बार बार कहना। गा.१२३१ चिक्खल्ल-कीचड़। गा. 1210 झंपणा-आच्छादन। गा. 2339 चिलिमिलि–पर्दा। गा. 388 झामण-जलाना। * गा.२३२५ चुडुल-उल्का, जलती हुई लकड़ी। गा. 42 | झामित-दग्ध। गा.२३२३ चुडुलि-अलात, जलती हुई लकड़ी। गा. 40 | झोसण-छोड़ना। गा.२२७८ चुल्ल-चूल्हा। गा. 1205 टाल-गुठली सहित। गा. 1952 चुल्लि-चूल्हा। गा. 1533 डंडिग-राजा। गा. 496, 2054 चेड-बालक। गा. 1226 डगल-पत्थर। गा.९०२ चोलपट्ट-जैन मुनि का कटिवस्त्र। गा. 1729 डहर छोटा। गा.८६५ चोल्ल-भोजन। गा.१२७९ | डाग-पत्ती वाला शाक। गा. 1213 छइय-आच्छादित। गा. 2403 | डिलय-शाखा–डिलयम्मि ओलइया। गा. 538 छगण-गोबर, कंडा। गा. 1203 डेवण-कूदना-फादना। गा. 1722

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