Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 899
________________ जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण महान् श्रुतधर आचार्य थे। उन्होंने कुछ कालजयी कृतियों की रचना की, जिसमें विशेषावश्यक भाष्य का नाम प्रमुख रूप से आता है। आचार्य तुलसी ने व्यवहार बोध' में उसकी प्रशस्ति में इस गाथा की रचना की है - आगम का वह कौनसा,सुविशद व्याख्या ग्रंथ। क्षमाश्रमण जिनभद्र का, जोन बना रोमन्थ।। जीतकल्प और उसका स्वोपज्ञ भाष्य उनकी कालजयी रचना है। इसमें बहुश्रुत आचार्य ने दस प्रायश्चित्त एवं उनके अपराधस्थानों का वर्णन किया है। प्रसंगवश गणिसम्पदा, संलेखना, अनशन, समिति-गुप्ति, छह कल्पस्थिति, स्थितकल्प, अस्थित कल्प आदि का वर्णन किया है। ग्रंथकार ने पांच व्यवहारों का वर्णन किया है लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य जीतव्यवहार के आधार पर प्रायश्चित्त निर्धारित करना था। इस ग्रंथ रत्न का अध्ययन करने से विद्वत् समाज जैन साधु की आचार-परम्परा के साथ प्राचीन भारतीय संस्कृति का दिग्दर्शन भी कर सकेगा।

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