Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 861
________________ देशी शब्द : परि-११ 667 इद्ध-चित्त-इद्धं चितं भण्णति। गा. 2528 कल्लाल-मदिरा बेचने वाला। गा. 426 उक्कुट्ठ-वनस्पति का कूटा हुआ चूर्ण। गा. 1494 काइय-मूत्र, प्रस्रवण। गा.८५६ उक्कुट्ठि-ऊंचे स्वर से आवाज करना। गा. 1724 काइयाड-मूत्र से बाधित होना। गा. 858 उक्खलि-स्थाली। गा. 1209 कामगद्दभ-काम में अति प्रवृत्त। गा. 1368 उक्खलिया-स्थाली। गा. 1205 कुक्कुस-धान्य आदि का छिलका। गा. 1494 उक्खलीय-स्थाली। गा. 1210 कुसण-दही और चावल से बना उड्डाह-तिरस्कार। गा.१४६९ | हुआ करम्बा, खाद्य-विशेष। गा. 1594 उड्डोय-डकार, ऊर्ध्व वायु। गा.९०८ | कुहावणा-बहुरूपिये की वृत्ति से उत्थाण-अतिसार रोग। गा.१४७२ अर्थार्जन करना। गा.१७२३ उदउल्ल-आर्द्र। गा. 1705 केया-रज्जू। गा.१०१६ उप्पर-ऊपर। गा. 1462 कोट्टग-बढई। गा.४२६ उल्लिंचति-खाली करना। गा. 1310 कोट्टिय-दुर्ग। गा. 1270 उव्वरित-अधिक, बचा हुआ। गा. 971 कोणग-कोना। गा.५०७ उस्सक्क-आगे करना। गा. 1224 | कोयव-रूई से भरे हुए कपड़े का उस्सण्ण-प्रायः। गा. 2396 / बना हुआ प्रावरण-विशेष, रजाई। ओलइय-संलग्न, लटका हुआ। गा.५३८ कोयवि-रूई से भरा कपड़ा। गा.१७७२ ओल्ल-आर्द्र। जीचू पृ. 9 खउरल्लिय-कलुषित, लिप्त। गा.७०५ ओसक्कण-पीछे करना। गा. 1224 खंत-पिता। गा.१३३६ . . ओसण्ण-प्रायः। गा. 892 खंतिया-मां। गा.१३२६ अंदु-शृंखला, बेडी। गा. 1570 खडुहा-आघात, ठोला। गा. 2378 कक्कडिग-ककड़ी। गा. 1154 खड्ड-खड्डा, गर्त। गा.५९१ कट्टर-कढ़ी में डाला हुआ घी का बड़ा। गा.१६१२ खद्ध-शीघ्र, प्रचुर। गा. 1413, 1188 कढिया-कढी, खाद्य पदार्थ-विशेष। गा. 394 खरंट-डांटना, उपालम्भ देना। कप्पट्ठ-बालक। गा. 919 खल्लग-एक प्रकार का जूता। गा. 1774 कप्पट्ठग-बालक। गा. 920 खुइय-खांसी। गा.९०६ कमढग-पिठर, स्थाली। जीचू पृ. 18 खुड्डु-छोटा साधु, लघु शिष्य। गा.१७५२ करडुग-मृतक-भोज। गा. 1395 खुड्डुग-लघु शिष्य। गा.१७५३ कलम-उत्तम चावल। गा.३९८ खुड्डिया-छोटी साध्वी। गा. 2361

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