Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ F पाद-टिप्पण विषयानुक्रम : परि-१४ 685 विषय गाथाङ्ग 875 963 1197 आराधक आलोचना आलोचना के प्रकार आलोचना के स्थान आलोचनाह आवलिका आवश्यकी सामाचारी आशातना आहार्य योग इच्छाकार सामाचारी. इन्द्रिय प्रत्यक्ष ईश्वर उत्सर्ग समितिउद्गम उद्घात मास उद्देश 'उपधान तप उपधि उपबृंहण उपसम्पदा के प्रकार उपसम्पदा सामाचारी उपस्थापना ऋजुजड़ ऋजुप्राज्ञ ऋजुमति मनः पर्यव एषणा ओघ उपधि औद्देशिक औपग्रहिक उपधि कंडक कपाटोद्भिन्न गाथाङ्क | विषय 129 कर्म 1197 | कर्म और शिल्प 1359 773 | कल्प 2592 734 कल्पत्रय 1190 242 कल्पत्रिक 2174 2086 कल्पप्रतिसेवना 584,601,75 880 | कल्पस्थित 2135, 2439 863,867 कल्पस्थिति 1969 1459 कवल-प्रमाण 1622 880 कालधर 326 10 कालप्रतिलेखना 2004 कालातीत 854 कुल, गण और संघ 751 1089 कृत 644 कृत और निष्ठित 1164 1197 कृतयोगी 960 1004,1005 कृष्ण 1727 केवलज्ञान 91,96 1042 केवलज्ञान-केवलदर्शन की उत्पत्ति 92. 779 कोटिसहित तप 881 कोशक (जूता) 1774 2464 क्षायोपशमिक अवधि 26,32 2021 क्षेत्रावग्रह 2084 2024 खल्लक (जूता) 1774 74 गंधर्वशाला 2163 | गुप्ति 784 958,1730 गृद्धपृष्ठमरण 1197 गृहनिषद्या 587 958,1731 गृहि-भाजन 1106 गोचर निषद्या 154 1256 | चक्रशाला 425 REER EEEEEEEEEEEEEEEEEE EFF F146 646 343 425 500 587

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