Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 847
________________ एकार्थक : परि-५ 653 परक्कम - पराक्रम। परक्कम बलं विरियं। परम - प्रधान / परम पहाणं ति होति एगटुं। पह - हेतु, कारण। पहो हेतू कारणं ति एते उ एगट्ठा। * पहो मग्गो हेऊ। पावारग - बड़ा कम्बल। पावारगो बृहत्कम्बल : परियच्छिा / पुन - पुण्य, कल्याण। पुन्नं कल्लाणमुत्तमं / बउस - चितकबरा / बउसं सबलं कब्बुरमेगहूँ। मिथ्या - असत्य। मिथ्यावितथानृतमिति पर्यायः। मिथ्याकरण - (सामाचारी)। मिथ्याकरणं मिथ्याकारः मिथ्याक्रियेत्यर्थः। लिंग - चिह्न। लिंगं चिंध निमित्तं, कारणमेगट्ठियाइँ एताई। वण्णणा - वर्णन, प्ररूपणा। वण्णणा परूवण त्ति एगट्ठा। ववहार - शोधि, प्रायश्चित्त / ववहारो आरोवण, सोधी पच्छित्तमेयमेगटुं। विणिज्जरा - शोधन। विणिज्जरा सोहणमिति एगटुं। विनय - विनाश। विणयो विणासणं ति य (एगटुं)। विरिय - पराक्रम। विरियं सामत्थं वा, परक्कमो चेव होंति एगट्ठा। वोच्छं - कहूंगा। वोच्छं वक्खामि त्ती। वोरमण - व्यपरमण, विराधन / वोरमणं उद्दवण विराहणेगटुं। संखेव - संक्षेप। संखेव समासो त्ति व, ओहो त्ति व होंति एगट्ठा। संथुणण - स्तुति। संथुणण संथवो तू, थुणणा वंदणगमेगटुं। संवर - संवरण। संवर घट्टण पिहणं एगटुं। संवरण - संवरण, ढकना। संवरणं संवरं ढक्कणं पिहाणं ति एगट्ठा। सायण - विनाश। सायण धंसो विणासो त्ति / साहरण - फेंकना / साहरणं उक्किरणं, विरेयणं चेव एगटुं। (गा.२१२६) (गा.७०६) (गा.७१०) (जीचू पृ.५) (जीचूवि पृ. 51) (जीचूवि पृ. 44) (जीचूवि पृ. 43) (जीचूवि पृ. 41) (जीचूवि पृ. 41) (गा.१७) (जीचूपृ.३०) (गा.१८४४) (जीचू पृ.५) (गा.२४७) (गा.१७७६) (गा.४) (गा.१७८०) (गा.६) (गा.१४२०) (गा.७०७) (जीचूवि पृ.५) (गा.८६३) (गा.१५५७)

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