Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 845
________________ परिभाषाएं : परि-४ 651 व्यञ्जनभेद-सुत्तं मत्तऽक्खरबिन्दूहिं ऊणमइरित्तं वा करेइ, सक्कयं वा करेइ, अन्नाभिहाणेण वा भणइ, एस वञ्जणभेओ। (जीचू पृ. 12) व्युत्सर्ग-जंकायचे?मेत्तेण, णिरोहेणं तु सुज्झती पावं। जह दुस्सिमिणादीयं, पच्छित्तेयं वियोसग्गं॥ (गा.७२३) वृद्धशील-अणियतचारी अणियतवित्ती अगिहो य होति जो अणिसो। _णिहुयसभाव अचंचल, णातव्वो वुड्डसीलो त्ति // (गा.१६६) शिल्प-अहवा जं सिक्खिज्जति, आयरिउवदेसतो तगं सिप्पं / (गा. 1359) शैक्ष-सेहो जो अभिणवो सिक्खं गाहिज्जइ। (जीचू पृ. 26) शोक-अनिष्टानां द्रव्याणां संयोगेन शोकः। इष्टानां वियोगेन। (जीचूवि पृ. 43) संक्लिष्टकर्म-अङ्गादानं-मेहनं तस्य परिमर्दनेन शुक्रपुद्गलनिर्घातनं निष्काशनं इत्येतत्संक्लिष्टकर्मोच्यते। (जीचूवि पृ.५१) संवर-मिच्छादसणाविरइकसायपमायजोगनिरोहो संवरो। (जीचू पृ.५) संवरण-संवरणं नवस्स कम्मस्स अणायाणं। (जीचू पृ.५) संहृत-संहृतम्-येन मात्रकेण दात्री दास्यति साधोरशनादिकं-तत्र पृथिव्यादिकं तुषादिकं वा यत्स्यात्तदन्यत्र सचित्ते अचित्ते वा क्षिप्त्वा तेन रिक्तीकृतेन यदि साधोर्ददाति तत्संहृतमशनाद्युच्यते। (जीचूवि पृ. 48) सग्रहण-सूर्ययुक्तादनन्तरनक्षत्रं सग्रहणम्। (जीचूवि पृ.५६) सत्कार-आसणमादीहि होति सक्कारो। (गा.८७४) समिति-गमणकिरिया हु समिती। (गा.८०४) सम्मान-सम्माणो उवहीए, जोग्गं जं जस्स तं कुज्जा। (गा. 874) * सहसाकरण- पुव्वं अपासिऊणं, छूढे पादम्मि जं पुणो पासे। ' ण य तरति णियत्तेउं, पादं सहसाकरणमेतं॥ . (गा. 135) साही-गली-साही ग्रामगृहाणामेकपाटी। (जीचूवि पृ. 58) सुखदुःखउपसम्पत्-सुखं वा दुःखं वा समं सोढव्यमिति सुखदु:खोपसम्पत्। (जीचूवि पृ. 41) सुप्रणिहित-• जो एतेसु ण वट्टति, कोधे दोसे तहेव कंखाए। सो होति सुप्पणिहितो, सोभणपरिणामजुत्तो वा॥ (गा. 240) हस्तताल-हत्थातालो जट्ठिमुट्ठिलउडोपलपहाराईहिं मरणभयणिरवेक्खो अप्पणो परस्स य पहरइ। (जीचू पृ. 27) हस्तालम्ब-हत्थालम्बो असिवपुररोहउवसमणत्थमभिचारगाइ करेइ। (जीचू पृ. 27)

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