Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 835
________________ 01 तुलनात्मक संदर्भ : परि-३ 641 2575 संघो ण लभति कज्जं बृ 5053, 504 सण्णीणं रुद्धाइं व्य 4386 व्य 1227 / 2504 सण्णी व असण्णी वा बृ 4995 2182 संजमकरणुज्जोया बृ 6485 / 2494 सति लाभम्मि व गेहति बृ५००१ 1106 संजमठाणाणं कंडगाण / पिनि 64 | 2178 सत्त य पडिग्गहम्मी पंक 1483 339 . संजमठाणाणं कंडगाण नि 3823, | 2133 सत्तावीसं जहण्णेणं बृ६४६१ व्य 4237 | 2051 सपडिक्कमणो धम्मो आवनि 836, 216 संजममायरति सयं व्य 4134 पंक 1359, पंचा 17/32, प्रकी 3989, 1610 संजोइय अतिबहुयं . पिनि 303/1 ___प्रसा 654, बृ 6425 299 संतविभवेहि तुल्ला सपदपरूवण अणुसज्जणा व्य 4174 293 संतविभवो तु जाहे ___व्य 4195 / 324 सपरक्कमे य अपरक्कमे आनि 282, 458 संथारों उत्तिमढे . व्य 4342 व्य 4224 463 संथारों तस्स मउगो व्य 4347 | 566 समणस्स उत्तिमढे व्य 4438 341 संलेहणा उ तिविधा तु. व्य 4238 | 519 सम-विसमम्मि व पडितो तु. नि 3941 344 संवच्छराणि चउरो व्य 4241 / 1354 सम्ममसम्मा किरिया नि 4414, 376 संविग्गदुल्लभं खलु नि 3839, | पिनि 207/2 व्य 4271 | 384 सयं चेव चिरावासोनि 3845, 691 . संविग्गे पियधम्मे व्य 4546 व्य 4277 2385. संविग्गो मद्दवितो पंक 1241, | 2134 सयग्गसो य उक्कोसा बृ 6462 बृ 5110 | 2109 सरिकप्पे सरिछंदे नि 2147, 1508, संसज्जिमेहिं वज्ज पिनि 245/1 पंक 1510, बृ 6445 1573 संसतेण तु दव्वेण पिनि 269 / 2110 सरिकप्पे सरिछंदे नि 2148, 1039 संसयकरणं संका तु. नि 24| पंक 1509, बृ६४४६ 591 संसारखड्डपडितो नि 465 / 489 सरीरमुज्झितं जेण नि 3930, 2511 संसारमणवयग्गं बृ५०१० व्य 4372 1390 संसोधण संसमणं नि 4436, | 1271 सव्वं पि य तं दुविधं पिनि 165 पिनि 214/3 | 265 सव्वं पि य पच्छित्तं व्य 4173 169 सगणामं व परिजितं व्य 4089 / 446 सव्वं भोच्चा कोई नि 3894 335 सगणे आणाहाणी व्य 4233 | 447 सव्वं भोच्चा कोई नि 3895, 1259 सच्चित्तपुढविलित्तं पिनि 163/1 व्य 4331 1417. सड्ढड्डत्त केसर... पिनि 220/2 | 318 सव्वण्णूहिँ परूविय व्य 4218

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