Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ तुलनात्मक संदर्भ : परि-३ 635 पंक 1361, 592 नाणादीपरिवुड्डी नि 466 / 2096 पज्जोसवणाकप्पो 122 नालीधमएण जिणा व्य 4047 बृ 6432 1366 निग्गंथ सक्क तावस नि 4420, 2175 पडिगहधारि जहण्णो तु. पंक 1453 पिनि 209 532 पडिणीययाएँ कोई नि 3968, 1118 निच्छयणयस्स चरणा... पिनि 66/1 प्रकी १२३२,व्य 4421 2551 निज्जूहितस्स असुभो बृ५०३० | 531 पडिणीययाएँ कोई नि 3967, 1341 नियमा तिकालविसयम्मि निभा 4405, व्य 4420 पिनि 204 | 2144 पडिपुच्छं वायणं चेव बृ६४७१ 294 निरवेक्खों तिण्णि चयती व्य 4196 / 1447 पडिमंतथंभणादी नि 4461, 605 नेहादि तवं काहं नि 487 पिनि 229 नोइंदियपच्चक्खो व्य 4031 | 1984 पडिमाएँ पाउया वा बृ 6370 90 पंकसलिले पसादो बृ 37 | 1466 पडिलाभित वच्चंता नि 4472, 2019 पंचज्जामो धम्मो पंक 1340, पिनि 231/4 बृ६४०२/ 220 / पडिलेहण-पप्फोडण व्य 4138 . : 281 पंच णियंठा भणिता व्य 4184 | 461 पडिलेहण संथारं नि 3908, 2602 पंचमहव्वयभेदो नि 6209, बृ 770 व्य 4345 2125 पंचविधे ववहारे बृ६४५५ | 432 . पडिलोमाणुलोमा वा नि 3882, 8 पंचविधो ववहारो व्य 4028 व्य 4319 529 पंचसता जंतेणं उनि 114, | 2123 पडिवज्जंति जिणिंदस्स बृ 6453 नि ३९६५,व्य 4418 पडिवाति अपडिवाती तु. नंदी 10 645 पंचिंदि घट्ट तावण व्य 4540 | 1443 पडिविज्जथंभणादी। नि 4459, पंचव संजता खलु तु.व्य 4188 पिनि 228 1625 पकामं च निकामं च पिनि 312 | 2307 पडिसेवणअणवट्ठो बृ५०६२ 218 पक्खे य पोसधेसुं व्य 4136 | 1128 पडिसेवण पडिसुणणा पिनि 69 110 पच्चक्खागमसरिसो व्य 4035 | 2479 पडिसेवणपारंची तु.बृ 4985 121 पच्चक्खी पच्चक्खं व्य 4046 | 1129 पडिसेवणाएँ तेणा पिनि 68/6 10 पच्चक्खो वि य दुविधो / व्य 4030 | 421 पडिसेवणातियारा नि 3872, 578 पच्चाह गुरू ते तू व्य 4451 व्य 4308 1430 पच्छासंथवदोसा नि 1044, | 143 पडिसेवणातियारे व्य 4065 पिनि 223 | 144 पडिसेवणातियारे व्य 4065/1 | 3/

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