Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ तुलनात्मक संदर्भ : परि-३ 627 697 1360 कत्तरिपयोयणट्ठा नि 4416, | 442 किं च तं णोवभुत्तं मे नि 3890, पिनि 207/4 व्य 4328 2439 कप्पट्ठितो अहं ते नि 2879, व्य 548 / 2091 किंचि अहिज्जेज्जाही पंक 2583 563 कप्पस्स य णिज्जुत्तिं व्य 4434 | 1954 किं ते पित्तपलावो बृ७९९ 564 कप्पस्स य णिज्जुत्तिं व्य 4435 | 466 किं पुण अणगारसहाय.... नि 3913, 454-57 कम्ममसंखेज्जभवं नि 3902-05, व्य 4350 व्य 4338-41 किं पुण आलोएती? व्य 4459 599 करण-भएसु तु संका नि 473 किं पुण गुणोवदेसो व्य 4552 398 कलमोयणो य पयसा नि 3854, किं पुण तं चउरंगं व्य 4253 व्य 4289 | 576 किं पुण पंचिंदीणं? व्य 4449 304 कल्लाणगमावण्णे व्य 4205 | 886 किं वच्चसि वासंते नि 302, 66070 145 कहेहि सव्वं जो वुत्तो व्य 4066 | | 572 किं वा मारेतव्वो व्य 4445 2380 कामं परपरितावो बृ५१०८ | 1479 किण्णु हु खद्धा भिक्खा पिनि 240/1 1126 कामं सयं न कुव्वति पिनि 67/5 / 2445 कितिकम्मं च पडिच्छति नि 2884, 1102. काय-वइ-मणा तिण्णि उ पिभा 17 व्य 553 2470 काया वया य ते च्चिय बृ 1303, | 2015 कितिकम्मं पि य दुविधं पंक 1338, 4979 बृ६३९८ 462 कायोवचितो बलवं नि 3910, | 1373 किमणेसु दुब्बलेसु य नि 4424, व्य 4346 पिनि 210/2 2210 कारणमकारणं वा नि 6653, 113 किह आगमववहारी व्य 4038 व्य 170, 613 | 359 किह णासेति अगीतो व्य 4254 440 काल-सभावाणुमतो नि 3888, | 1241 कोतकडं पि य दुविधं तु.नि 4475, व्य 4326 तु.पिनि 139 58 काले चतुण्ह वुड्डी आवनि 34, | 363 / / कुज्जा कुलादिपत्थारं व्य 4258 ___ नंदी 1807, विभा 617 | 380 कूवति अदिज्जमाणे नि 3843, 1000 काले विणए बहुमाणे दशनि 158, व्य 4275 नि 8, पंचा 15/23, प्रसा 267, | 1998 केरिसगो तू राया बृ६३८१ भआ 112, मूला 269, व्य 63 | 1378 केलासभवणा एते नि 4427, 334 किं कारणऽवक्कमणं नि 3820, | पिनि 210/5 व्य 4232 | 2115 केवतियकालसंजोगो बृ६४४९

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