Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ 628 जीतकल्प सभाष्य 2035 केवलगहणं कसिणं बृ 6415 / 332 गणणिसिरणम्मि उ विही नि 3819, 14 केसिंचि इंदियाई बृ 26, तु. विभा 91 | व्य 4231 476 कोई परीसहेहिं नि 3923, व्य 4360 | 329 गणणिसिरणा परगणे नि 3814, 494 को गीताण उवाओ नि 3935, व्य 4228 व्य 4377 / 2473 गणहर एव महिड्डी बृ 4982 1148 कोद्दवरालगगामे पिनि 76 / 2129 गणोवहिपमाणाइं . बृ६४५८ 696 को वित्थरेण वोत्तूण व्य 4551 / 2152 गतेहिं छहिँ मासेहिं तु. बृ६४७६ 1347 कोवो वलवागभं पिभा 34 | 2153 गतेहिं छहिं मासेहिं बृ६४७७ 550 कोसल्लगेगवीसति.... व्य 4413 | 2052 गमणागमणविहारे पंचा 17/33, 1188 खद्धे गिद्धे य रुया पिनि 83/5 बृ६४२६ 894 खाणुगमादी मूलं नि 310, 18 गमणागमणविहारे व्य 110 तु.६६०७८ | 1335 गामाण दोण्ह वेरं पिनि 202 689 खार हडि हड्डमाला व्य 4544 | 2357 गिण्हणें गुरुगा छम्मास बृ 2500, 5093 . 186 खिप्प बहु बहुविहं वा व्य 4105 / 2354 गिहवासे वि वरागा बृ५०९० . 1322 खीरे य मज्जणे मंडणे तु.पिनि 197 | 368 गीतत्थदुल्लभं खलु नि 3832, . 2359 खुटुं व खुड्डियं वा बृ५०९५ / व्य 4263 891 खुड्डग जणणी उ मुया . नि 307, | 477 गीतत्थमगीतत्थं नि 3924, व्य 4361 बृ६०७५ | 1434 गुणसंथवेण पच्छा नि 1048, 201 खेत्त असति अगहित्ता व्य 4119 . . पिनि 226 195 खेत्तं मालवमादी व्य 4114 | 1432 गुणसंथवेण पुव्वं नि 1046, पिनि 225 1770 गंडी कच्छवि मुट्ठी नि 4000, | 1842 गुरुगं च अट्ठमं खलु बृ६०४३, बृ 3822 ___ व्य 1069, 1121 425 गंधव्व-नट्ट-जड्डऽस्स। नि 3875, | 1838 गुरुगो गुरुगतरागो 66039, व्य 4312 व्य 1065 2160 गच्छम्मि य णिम्माया पंक 1364, | 2340 गुरुगो चतुलहु चतुगुरु नि 2704, बृ६४८३ बृ५०७७ 897 गच्छसि ण ताव गच्छं नि 313, 1840 गुरुगो य होति मासो बृ६०४१, 6237, बृ६०८४ व्य 1067, 1119 2067 गच्छे पडिबद्धाणं पंक 2559, | 2493 गुरुभत्तिमं जो य मणाणुकूलो बृ५००० प्रसा 616 | 1124 गुरुराह जो पमत्तो तु.पिनि 67/3 .

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