Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ 632 जीतकल्प सभाष्य - 146 ण संभरति जो दोसे व्य 4067/ 225 णिस्सेसमपरिसेसं व्य 4142 401 ण हु ते दव्वसंलेहं . नि 3855, | 2363 णीएहिं तु अविदिण्णं बृ५०९८ व्य 4291 | 1041 णेगविधा इड्डीओ नि 26 2369 णाऊण य वोच्छेद तु. बृ 5102 / 2028 तओ पारंचिया वुत्ता पंक 1344, 417 णाणणिमित्तं अद्धाण... नि 3868, बृ६४१० व्य 4304 680 तं चेवऽणुकज्जंतो व्य 4535 416 णाणे वितहपरूवण तु.नि 3867, तं णो वच्चति तित्थं व्य 4219 तु.व्य 4303 | 474 तं तारिसगं रतणं नि 3921, व्य 4036 प्रकी 1294, व्य 4358 479 णातं संगामदुगं व्य 4363 | 1586 तं पि य सुक्खे सुक्खं पिनि 291/1 1957 णाभिप्पायं गिण्हसि __ बृ८०१ | 328 तं पुण अणुगंतव्वं व्य 4227 1139 णामं ठवणा दविए ‘पिनि 73 | 124 तं पुण केण कतं तू व्य 4049 1314 णामं ठवणा दविए पिनि 194/ 588 तं पुण होज्जाऽऽसेवित व्य 4461 357 णासेति अगीतत्थो नि 3826, | 2569 तं पूयइत्ताण सुहासणत्थं बृ 5048, पंक 2389, व्य 4252|| व्य 1221 371 णासेति असंविग्गो नि 3834, | 74 तं मणपज्जवणाणं . नंदी 23 व्य 4266 | 86 तं मणपज्जवणाणं बृ 35 2294 णिच्छयनयस्स चरणा.... पंचा 11/45 | 441 तण्हाछेदम्मि कते तु.नि 3889, णिज्जवगो अत्थस्सा व्य 4103 तु. व्य 4327 560 णिज्जूढं चोद्दसपुव्विएण व्य 4431 | 2158 ततिय-चउत्था कप्पा बृ६४८१ 2572 णिज्जूढो मि णरीसर! बृ५०५१, 1310 ततियम्मि करं छोढुं / पिनि 192/4 व्य 1224 | 164 तत्तो य वुड्डसीले व्य 4084 णिण्हवणे णिण्हवणे मि 301, 347 तत्थेक्कं छम्मासं व्य 4244 बृ 6069 | 173 तपु लज्जाए धातू व्य 4093 309 णिब्भत्थणाइ बितियाय व्य 4210 | 1172 तम्हा ण एस दोसो पिनि 80/5 491 णिव्वाघातेणेवं तु.नि 3932, 366 तम्हा पंच व छ स्सत्त तु.नि 3830, व्य 4374 तु. व्य 4261 1037 णिस्संकित णिक्कंखित उ 28/31, 374 तम्हा पंच व छ स्सत्त / तु.नि 3837, दशनि 157, नि 23, पंचा 15/24, तु. व्य 4269 प्रज्ञा 1/101/14, मूला 201 | 393 तम्हा परिच्छणा खलु तु.व्य 4286 184 الجاد ولد

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