Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ 622 जीतकल्प सभाष्य / नि 138, अलभंता य वियारं बृ६३९२ अल्लीणा णाणादिसु . व्य 4513 अवराहं वियाणंति व्य 4054 अवरो वि फरुसमुंडो बृ५०२० अवरो विवाडितो मत्त.... नि 139, बृ५०२१ अवरो वि सिहरिणीए तु.पंक 457, तु. बृ४९९२ अवसेसा अणगारा नि 3917, . प्रकी 1290, व्य 4354 अवस्सगमणं दिसासु नि 299, 883, बृ६०६७ अवि णाम होज्ज सुलभो नि 4426, पिनि 210/4 226 अद्दिटुं दिटुं खलु व्य 4143 | 2009 1638 अद्धमसणस्स सव्वं.... पिनि 313/2, | 665 व्य 3701 / 130 1428 अद्धिति दिट्ठीपण्हय नि 1043, | 2531 पिनि 222/2 583 अध सो गतो उ तहियं व्य 4456 / 2532 567 अपरक्कमो मि जातो व्य 4439 570 अपरक्कमो य सीसं व्य 4443 | 2489 2364 अपरिग्ग बृ५०९९ 392 अपरिच्छणम्मि गुरुगा व्य 4285 | 470 597 अपरिच्छितुमायवए नि 471 181 अपरीणामगमादी व्य 41008 3 2047 अप्पच्छित्ते य पच्छित्तं निभा 2864, पंक 1356, बृ६४२२ | 1377 1771 अप्पडिलेहितदूसे नि 4001, प्रसा 677 | 2018 1235 अप्पत्तम्मी ठवितं पिनि 135 | 178 773 अप्पा मूलगुणेसुं व्य 238, 6316 | 2170 2577 अब्भत्थितो सयं वा बृ५०५४, | 391 व्य 1228 2169 अन्भिंतरअतिसेसो पंक 1447 / 2001 2472 अब्भुज्जतं विहारं बृ 4981 1190 अब्भोज्जे गमणादी पिनि 84/1 / 2558 507 अभिघातो वा विज्जू व्य 4388 | 386 2567 अभिधाणहेतुकुसलो बृ 5046, व्य 1219 | 1991 2563 अभिसेगं तो पेसे बृ५०४३ | 2393 2064 अममत्त-अपरिकम्मो पंक 2556 | 1392 679 अमुगो अमुगत्थकतो व्य 4534 982 अरह पूयाएँ धातू तु. आवनि 583/3 | 1228 अवि य हु पुरिसपणीतो. अव्वत्तं अफुडत्तं अव्वावण्णसरीरा असंथरं अजोग्गो वा बृ६४०१ व्य 4097 पंक 1448 नि 3851, असणादीया चतुरो असहू सुत्तं दातुं असिवादीहि वहंता व्य 4284 नि 2500, बृ 6384 बृ५०४० तु.नि 3847, व्य 4279 बृ६३७४ बृ५११२ असिवे ओमोदरिए असिवे पुरोवरोधे अस्संजमजोगाणं नि 4437, पिनि 215 पिभा 27 अस्सुट्ठिता भणंती

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