Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ 558 जीतकल्प सभाष्य पढम बिति देस सव्वे पढमबितियादिएहिं पढमममुंचतेणं पढमम्मि य संघयणे पढमस्स य कज्जस्सा 581 2141 882 901 884 1121 778 | 999 1252 1254 2351 1173 2424 1156 पढमाएँ पोरिसीए पढमादीसंघयणो पढमिल्लुग भावम्मी पढमे चउलहुगा तू पढमो जावंतज्झो.... पढमो दोसु वि लग्गो पणगं दस पण्णरसं पणगं मासविवड्डी पणगबियाइ वणस्सति पणगादिभाणछेदं पणगादी आवत्ती पणगादी छम्मासा.... पणगे णिव्विगती तू पणगे वि सेवितम्मी पण दस पण्णरसं वा पणुवीस अद्धतेरस पणुवीसदिणा भिण्णो पण्णरसहिं गुरुगेहिं पण्णरसुग्गमदोसा पण्णवगस्स तु सपदं पतिट्ठा ठवणा ठवणी पतिदिणपच्चक्खाणं पत्तमवाएंतस्स वि पत्तेयं पत्तेयं पत्तेयपरंपरठवित पत्तेयबुद्ध णिण्हग 2305 पदमक्खरमुद्देसं 934 पमाण कप्पट्टितो तत्थ 624 पयला उल्ले मरुगे 556 पयलादी तु पदा खलु 618-623,639- | पयलासि किं दिवा ण 643, 645-648 परकम्ममत्तकम्मी..... 963 परगण संविग्गाओ 174 परगणे जे अमणुण्णा 1593 परगामाहड दुविधं 1217 | परदेसआहडम्मी 1704 | परधम्मिया वि दुविधा 1483 परपक्ख सपक्खे त्ती 1804 परपक्ख सपक्खे वा 115 परपक्खो तु गिहत्थो 1261 परपक्खो परपक्खे 650 परपच्चइया छाया परपरितावणकरणं 1800 | परवाइण सिस्सेण 1220 परस्स तं देति सए व गेहे 1938 परिठवणुच्चारादी . 1833, 1902 परिठविएसेतेसुं 994 परिणत गीतत्था तू 1802 परिणमति जहत्थेणं 2226 परिणामगोऽत्थ भणती 2076 परिणामगो हु तत्थ वि 268 परिणामा ऽपरिणामा 1968 परिणिट्ठित परिण्णात 1754 परिणिव्वविया वाए 1027 परितावितऽणागाढे 1702 परियट्टिए अभिहडे | परियट्टियं पि दुविधं 1144 परिवारादिणिमित्तं 2501, 2505 1169 2379 187 1262 815 988 2192 1949 1952 579 1942 155 183 1070,1072 1096 1247 * 30 42

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