Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 762
________________ 568 जीतकल्प सभाष्य 472 471 469 2016 1756 2124 2476 1758 468 .1712 1361 15 1679 1737 सपरक्कमे य अपरक्कमे सपरक्कमे य भणितं सप्पच्चवाय णिरपच्च.. समउत्तरवुड्डीए समणट्ठ जाव दुछडा समणट्ठ वावितादी समणस्स उत्तिमढे समणे माहण किवणे सम-विसमम्मि व पडितो समितिविसुद्धिणिमित्तं सम्ममसम्मा किरिया सम्मूढेणितरेण वि सयं चेव चिरावासो सयग्गसो य उक्कोसा सयणं सेज्ज पडिस्सय सयमेवाऽऽभोएतुं सरिकप्पे सरिछंदे सरीरमुज्झितं जेण सव्वं चिय आवसयं सव्वं ण कप्पएतं सव्वं णेयं चतुहा सव्वं पि य तं दुविधं सव्वं पि य पच्छित्तं सव्वं भोच्चा कोई सव्व जहुद्दिढेसुं सवण्णूहिँ परूविय सव्वत्थ तु चतुभंगो सव्वत्थ तु णिव्विगतिं सव्वबहुअगणिजीवा सव्वब्भंगे छटुं सव्वम्मि बारसविधे सव्ववतेसुं गुत्तिसु 324 सव्वसुहप्पभवाओ 497 सव्वाओ अज्जाओ 1253 सव्वाहिं वि लद्धीहिं 29 सव्वाहिं संजतीहिं 1161 | सव्वे काउस्सग्गे 1160 सव्वे चरित्तमंता य 566 सव्वे वाऽऽसाएंतो 1364 सव्वे सयमुस्सारे सव्वे सव्वद्धाए 974,985 सव्वेस जहद्दिट्रेस 1354 सव्वेसु भद्दपंता 2486 सव्वेसु य बितियपदे 384. सव्वेसु वि एतेसुं 2134 सव्वेहि जियपदेसेहिं 984 सव्वोवधि हारेती 381 सव्वोवहिकप्पम्मि य 2109, 2110 ससणिद्ध हत्थमत्ते 489 ससणिद्भुदउल्ले या 1760 ससहाओ असहाओ 1539 | सहसा-अणभोगा तू 97 | सहसाऽणाभोगा तू 1271 सहसाऽणाभोगेण व 265 सा आलोयण दुविधा 446, 447 | सा गहणेसण चतुहा 1683 | सा चतुहा नामादी 318 सा जेसि तुवट्ठवणा 1167 सा णेच्छई विसण्णो 1721 सा दुह देसे सव्वे 53 सा पाहुडिया दुविधा 1032 सा पुण छसु णातव्वा 219 सामण्णं अविसेसित 914 | सामण्णं पुण सुत्ते 1495 1494 2336 1719 918,937 915, 44 770 1474 1605 2026 830 2474 1224 1559 1811 25

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