Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 761
________________ पदानुक्रम : परि-१ 567 125 752/ संजोयणेत्थ दुविधा संतविभवेहि तुल्ला संतविभवो तु जाहे संते वि आगमम्मी संतेहिं वि चेलेहि संथारादीणऽहवा संथारों उत्तिमद्वे संथारों तस्स मउगो संबंध पुव्व दुविधो संबंधपुव्वसंथवों . संबंधसंथवेसो संभमऽणेगविधो खलु संभमभयातुरावति.. संलेहणा उ तिविधा संवच्छराणि चउरो संवर घट्टण पिहणं . संवर-विणिज्जराओ संवरियासवदारो संविग्गदुल्लभं खलु संविग्गऽवज्जभीरू * संविग्गे पियधम्मे संविग्गों मद्दवितो संसज्जिमेहिं वज्जं संसट्ठमाइयाणं संसट्ठहत्थ-मत्ते संसत्तहत्थ-मत्ते संसत्तेण तु दव्वेण संसयकरणं संका संसारखड्डपडितो संसारमणवयग्गं संसोधण संसमणं सक्कपसंसा अस्सद्द... 1611 | सक्कारं सम्माणं 299 सगणामं व परिजितं 293 | सगणे आणाहाणी सग्गाम परग्गामे 1978 सग्गामाहड-दद्दर सग्गामाहड दुविधं 458 सच्चित्ततेण्णमेतं 463 सच्चित्तपुढविकाए 1422 सच्चित्तपुढविकाओ 1426 सच्चित्तपुढविलित्तं 1431 सच्चित्तमक्खितम्मि उ 933 सच्चित्तमीस आदिल्ल... 13 सच्चित्त मीस एक्को 341 सच्चित्त मीसगे या 344 सच्चित्तादिसु अच्चित्त... 707 सज्झायविहारो तू 710, 2 सज्झिल्लगादिणं तू 708 सड्ढडरत्त केसर.... 376 सढयाए पुण दोसो 2598 सण्णीणं रुद्धाई सण्णी व असण्णी वा 2385 सतमुस्सारे एक्कं 1508 सति लाभम्मिं साधू 2130 सति लाभम्मि व गेण्हति 1598 सत्तम गाह समत्ता 1599 सत्त य पडिग्गहम्मी 1573 सत्तविधं भयमेतं 1039 सत्तावीसं जहण्णेणं 591 सथलीसु ताव पुव्वं 2511 सपडिक्कमणो धम्मो 1390 सपदपरूवण अणुसज्जणा 800 सपरक्कमं तु तहियं 543 169 335 1325 1703, 41 1251 2350 1518 1520 1259 1501 1560 1549 1602 1548 754 1590 1417 2338 504 2504 1757 1982 2494 763 2178 928 2133 2366 2051 267 327

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