Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 778
________________ 584 जीतकल्प सभाष्य देवकुमारसदृश एक बालक है। बालक को देखकर आचार्य ने कहा 'इसका संरक्षण करो। यह भविष्य में जिन-प्रवचन का आधार होगा।' उसका नाम 'वज्र' रखा गया। आचार्य ने बालक साध्वियों को सौंप दिया। उन्होंने शय्यातर को दे दिया। शय्यातर जैसे अपने बालकों को स्नान कराता, आभूषण पहनाता, दूध पिलाता, वैसे ही सबसे पहले बालक वज्र की सार-संभाल करता। इस प्रकार वह बड़ा होने लगा। बालक को प्रासुक -प्रतिकार इष्ट था। साधु वहां से विहार कर अन्यत्र चले गए। सुनन्दा ने शय्यातर से अपना पुत्र मांगा। शय्यातर ने बालक को देने का निषेध कर दिया और कहा—यह बालक अमुक द्वारा दिया गया है अतः यह हमारी धरोहर है। सुनन्दा वहां आकर रोज उस स्तनपान कराती / इस प्रकार वह बालक तीन वर्ष का हो . गया। एक बार मुनि विहार करते हुए वहां आए। राजकुल में बालक विषयक विवाद पहुंचा। शय्यातर .. ने राजा से कहा—'इन साध्वियों ने मुझे यह बालक सौंपा है।' सारा नगर सुनन्दा के पक्ष में था। वह बहुत सारे खिलौने लेकर वहां उपस्थित हुई। राजा के समक्ष इस विवाद का निपटारा होना था। राजा पूर्वाभिमुख होकर बैठा। उसके दक्षिण दिशा में मुनि तथा वामपार्श्व में सुनन्दा और उसके पारिवारिक जन बैठ गए। . राजा ने कहा—'ममत्व से प्रेरित होकर यह बालक जिस ओर जाएगा, वह उसी का होगा।' सभी ने इस बात को स्वीकार किया। पहले कौन बुलाए इस प्रश्न पर राजा ने कहा—धर्म का आदि है पुरुष इसलिए पहले पुरुष बुलाए। तब नागरिकों ने कहा 'यह इनके परिचित है इसलिए अच्छा हो कि पहले माता बुलाए क्योंकि मां दुष्करकारिका तथा कोमलांगी होती है।' मां आगे आई। उसके हाथ में अश्व, हाथी, रथ, वृषभ आदि खिलौने थे। वे मणि, सोना, रत्न आदि से जटित थे। वे सभी खिलौने बालक को लुभाने वाले थे। उन्हें दिखाती हुई मां सुनन्दा ने बालक की ओर देखकर कहा—'आओ, वज्रस्वामी!' यह सुनकर बालक उस ओर देखता रहा। उसने मन ही मन जान लिया कि यदि मैं संघ की अवमानना करता हूं तो दीर्घसंसारी बनूंगा। अन्यथा मां भी प्रव्रजित होगी। यह सोचकर मां के द्वारा तीन बार बुलाने पर भी बालक वज्र मां की ओर नहीं गया। तब मुनि बने हुए पिता ने कहा-'यदि तुमने प्रव्रज्या का मन बना लिया है तो वज्र! इस ऊपर उठाए हुए धर्मध्वज रजोहरण को आकर ले लो। यह कर्मरूपी रजों का अपहरण करने वाला है।' बालक वज्र तत्काल आगे आया और शीघ्रता से रजोहरण को ग्रहण कर लिया। लोगों ने 'धर्म की जय हो' कहकर जोर से जयनाद किया। तब माता सुनन्दा ने सोचा—'मेरा भाई, पति और पुत्र ये तीनों प्रव्रजित हो गए। मैं अकेली घर में क्यों रहूं?' यह सोचकर वह भी प्रव्रजित हो गई। बालक वज्र ने जब स्तनपान करना छोड़ दिया, तब साध्वियों ने उसे प्रव्रज्या दे दी। वह साध्वियों के पास ही रहने लगा। ग्यारह अंग का पाठ करती हुई साध्वियों से उसने ग्यारह अंग सुने / पदानुसारी लब्धि के कारण सुनने मात्र से वह उनका ज्ञाता हो गया। जब बालक आठ वर्ष का हो गया, तब उसे साध्वियों के उपाश्रय से आचार्य के पास रख दिया। 1. जीभा 612, आवचू 1 पृ. 390-92, हाटी 1 पृ. 193, 194 /

Loading...

Page Navigation
1 ... 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900