Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ 566 जीतकल्प सभाष्य 1054 1057 1214 1476 253 57 733 1293 1643 1209 2255, 2260 .. 300 विज्जाएँ उ णिदरिसणं विज्जा-मंतविसेसो विज्जा-मंताभिहिता विज्जा-मंते चतुलहु विज्झाउ त्ति ण दीसति विज्झातमुम्मुरिंगाल.... विणयग्गाहण खुड्डे विणयब्भंगो एसो विण्णाणाभावम्मि वि. विपुलं तवमकरेंतो विमलीकत णे चक्खू विरियं सामत्थं वा विहरेंति एगसंभोइगा विहिपरिभुत्तुव्वरितं वीसग्गसो य वासाइं वीसज्जिता वि साहू वीससपयोग अब्भाइ.... वीसाऽऽरद्धं ठायति वेज्जो त्ति पुच्छितव्वो वेदण वेयावच्चे वेयावच्च करतो वेयावच्चकरो तू वेयावच्चकरो वा वेयावच्चतराणं वोच्छं वक्खामि त्ती वोच्छेद गुरुगिलाणे वोलेंता ते व अण्णे वा सं एगीभावम्मी संकमणऽण्णोण्णस्सा संकाए चउभंगो संका चारिग चोरे संकादिगेसु देसे 1439 | संकादी अट्ठपदा 1438 | संकादी अट्ठसु वी 1448 | संकामेउं कम्म 1437 | संकित मक्खित णिक्खित्त 1530 | संखाईया ठाणा 1529 | संखातीताओ खलु 2378 संखेज्जम्मि तु काले 879 | संखेवतो उ एते 227 | संखेवेण दुहा ऊ 1790 | संगाले चतुगुरुगा 1435 | संघट्टकता चुल्ली 1776 संघतणधितिसमग्गा 781 संघतण-धितीहीणा 971 संघयण-धितीजुत्तो 2118 | संघस्साऽऽयरियस्स य 1452 | संघस्सोह-विभागे 103 | संघाडग हिंडते 2242 | संघाडग हिंडंतो 1387 / संघाडगो तु जाव उ 1658 | संघाडपच्चयट्ठा / 2280 | संघियचिक्खल्लेणं 1965 संघो ण लभति कज्जं 672 संजति कप्पठितें पढमों संजमकरणुज्जोया 4 संजमठाणमसंखा 2332 | संजमठाणाणं कंडगाण 1150 संजममायरति सयं 657,1107 | संजम सकलं किच्चं 2085 / संजोइय अतिबहुयं 1477 | संजोएंतो दव्वे 2008 संजोए रसहेतुं 28 संजोयण भणितेसा 515 602 1992 1221 1592 2444 1330 1210 2575 1966 2507 2182 1109 339, 1106 216 2296 1610 1616 1682 1621

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