Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 732
________________ 538 जीतकल्प सभाष्य 655 33 523 481 2533 1256 1269 2557 1334 1963 2049 1585 1587 428 78 336 उग्गहितस्स तु ईहा उग्गादीयं तु कुलं उग्गिण्णम्मि य गुरुगो उग्घाडिते य दिट्ठो उच्चरति काइयं तू उच्चरती उच्चारं उच्चारं पासवणं उच्चारभूमि पढमा उच्चारे पासवणे उज्जाणरुक्खमूले उज्जुमती उड्डे ऊ उज्जुमती विउलमती उज्जेणी उस्सण्णं उद्वेज्ज णिसीएज्जा उढेह वयामो ती उडुबद्धिगेसु अट्ठसु उड्ढे उड्डोयादी उड्ड दुभूमादीयं उत्तरगुण बहुगा तू उदगमणंतर णवणीत..... उदय-ऽग्गि-चोर-सावय उदुवासकालऽतीते उद्दवणे कल्लाणं उद्दिस्सति वरिसेण य उद्देसकडे कम्मे उद्देसग अज्झयणे उद्देस समुद्देसे उद्देसादि चतुण्ह वि उद्देसिगचरिमतिगे उद्देसिगम्मि लहुगो उद्देसियं समुद्देसियं उद्देसे णिव्विगतिं 190 उद्धारणा विहारण 1357 उप्पज्जमाणओ खलु 2375 उप्पण्णे उवसग्गे 853 उप्फिडितुं सो कणगो 987 उब्भामग वडसालेण 986 उब्भिण्ण होति दुविधं 854 उब्भिण्णेतं भणितं उभयं पि दाऊण स पाडिपुच्छं 814 उभयच्छण्णा एसा उभयतरो तू ततिओ उम्मग्गदेसए मग्ग... उम्मीसं पुण दायव्वयं 2396 उम्मीस भणितमेतं 2456 उवगरणगणणिमित्तं 841 उवगरणपूति भणितं / 2081 उवगरण सरीरम्मि य 908 उवगरणेहि विहूणो 1270 उवधी जहण्णमादी 2284 उवधी धोतऽवसाणे 1528 उवरितलत्थो य णडो. 613 उवरिमतिगसंघतणो 2074 उववूह होति दुविधा 1074 उववूहादि चतुण्ह वि 2120 उवसंतो वि समाणो 1197 उवसंपद पंचविधा 23, 995 उवसंपया य काले 22 | उव्वत्त दार संथार 999 उसिणस्स छड्डुणे देंतओ उस्सग्गेण य भणितो 1200 उस्सप्पिणि-ओसप्पिणि.... 1198 उस्सुत्तं ववहरेंतो 1022 एक्कं व दो व तिण्णि व 1212 492 484 1740 1785 1400 2433 1042 1055 2515 779 881 435 1603 2063 35 उस्सन 71 2048 367,375

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