Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ पदानुक्रम : परि-१ 539 2395 1673 एक्कासण पुरिमड्डा एक्केक्कं तं दुविधं एक्केक्के चउभंगो एक्केक्को पुण तिविधो 1783 2594 254 275 2139 373 365 1498 2024 1069 एगंतणिज्जरा से एगट्ठ एगवंजण एगट्ठितदारमिणं एगम्मि उ णिज्जवगे एगल्लविहारादी एगल्लविहारे या एगवसहीएँ पणगं एगागी खेत्तबहिं एगाह पणग पक्खे , एगिंदिऽणंतवज्जे एगिंदिय पुढवादी एगिंदियाण घट्टण..... एगेण कतमकज्जं एगो तित्थगराणं एगो दवस्स भागो एगो संथारगतो एतं चिय पुस्मिटुं एतं ठितम्मि मेरं एतं णाऊण तहिं एतं ति जहुद्दिटुं एतं तु अजतणाए एतं तु कारणम्मी एतं तु मितं भणितं एतं पादोवगमं . एतं पुण सव्वं चिय एतं बहुदेवसियं एतं हत्थायालं 305, एतं हत्थालंबं 326 एतद्दोसविमुक्को 1563 एत पसंगाभिहितं 957 एतम्मि जहुद्दिढे 2135 एतस्स जीतकप्पस्स 541, 553 एताऽऽगमववहारी 1131 एतुवरिं भण्णिहिती 1138 एते अणूणिए कप्पे 378 एते अण्णे य तहिं 221 एते अण्णे य बहू 215 एते चेव उ मक्खित 2068 एते चेव य ठाणा 101 एते च्चिय अब्भहिते 782 एतेण मज्झ भावो 683 | एते दस तू वुत्ता | एते दायगदोसा 31 एते दायग भणिता 1184 एते भणिता लहुगा 2179 एते सपक्खदुट्ठा 1640 एते सव्वेऽवेगं 387 एतेसिं अट्ठाए 1750 एतेसिं चिय दव्वादि... 2101 एतेसिं जे वहंती 1820 एतेसिं ठाणाणं | एतेसिं दोण्ह वि तू 2230 | एतेसिं पंचण्ह वि एतेसिं पाउग्गं 1642 एतेसि चतुण्डं पी 557 एतेसि दायगाणं | एतेसुं तेण्णेते 1764 | एतेसुं पुढवादिसु 2392 | एतेसुक्कोसाणिं 1382 2030 1576 1582 2245 2498 2234 744 101 2154 139 711 2059 743 2502 1575 2313 1715 2291

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