Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 14
________________ जैनविद्या 24 प्रभाचन्द्र ने पदच्छेद करने का कार्य किया है। इससे उसको समझने में सरलता आ जाती है। 4. शब्दाम्भोज भास्कर - यह ग्रंथ आचार्य पूज्यपाद द्वारा रचित 'जैनेन्द्र व्याकरण' पर रची हुई ‘भास्कर वृत्ति' है। यह शब्द-सिद्धिपरक व्याकरण ग्रंथ है। यह व्याकरण में आये हुए शब्दों की सिद्धि करने में सूर्य के समान होने से यथानाम तथागुण है। यह ग्रंथ इनको प्रमुख वैयाकरण सिद्ध करता है। 5. प्रवचनसार-सरोज भास्कर - यह ग्रंथ आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित ग्रंथ 'प्रवचनसार' को सरोज की उपमा देकर उस पर रची अपनी टीका को भास्कर (सूर्य) के सदृश प्रकट करनेवाला है। 6. समयसार टीका - यह आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित ग्रंथ समयसार की टीका है। कहते हैं जिन गाथाओं का स्पष्टीकरण आचार्य अमृतचन्द्र ने नहीं किया उनकी टीका आचार्य प्रभाचन्द्र ने की है। इससे सिद्ध होता है कि इनकी अध्यात्म में भी रुचि थी। 7. पंचास्तिकाय-प्रदीप - यह ग्रंथ भी आचार्य कुन्दकुन्द की मूलकृति 'पंचास्तिकाय' पर टीकास्वरूप रचा गया है। यह जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश इन पाँचों अस्तिकायों पर उसी प्रकार प्रकाश डालता है जिस प्रकार दीपक वस्तु पर प्रकाश डालता है। 8. लघु द्रव्यसंग्रह वृत्ति - यह आचार्य नेमिचन्द्र सैद्धान्तिकदेव द्वारा प्राकृत भाषा में 58 गाथाओं में रचित 'द्रव्य-संग्रह' पर टीकास्वरूप वृत्ति है। 9. महापुराण-टिप्पणी - महापुराण आचार्य जिनसेन द्वारा रचित महाकाव्य ग्रंथ है। इस पर प्रभाचन्द्र ने टीका की है। ____10. रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका - यह ग्रंथ आचार्य समन्तभद्र द्वारा रचित 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' की टीका है। पहले यह संस्कृत टीका आचार्य प्रभाचन्द्र द्वारा रचित नहीं मानी जाती थी। किन्तु पण्डित कैलाशचन्द्रजी तथा उनके सहयोगियों ने सिद्ध कर दिया है कि यह टीका आचार्य प्रभाचन्द्र द्वारा ही रची गई है। टीका अत्यन्त सरल एवं सुबोध संस्कृत में लिखी गयी है। इसकी हिन्दी टीका पण्डित पन्नालालजी साहित्याचार्य ने की है। इस ग्रंथ में 150 संस्कृत श्लोक हैं। सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान एवं सम्यक्-चरित्र का वर्णन श्रावकों के हितार्थ रचा गया है। ग्रंथ में 70 अतीचारों तथा 11 प्रतिमाओं की भी सुगम व्याख्या की गई है।

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