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जैनविद्या 24
6. छठे, 'प्रभाचन्द्र' कुलभूषण आचार्य के शिष्य थे और वे पद्मनन्दि सैद्धान्ति के शिष्य थे, (शक सं. 1085 - 1163 ई.)।
तच्छिष्यः (कौमारदेव) कुलभूषणाख्य यति। . पश्चाच्चरित्र वारान्निधिस्सिद्धन्ताम्बुधिपारगोनतविनेयस्तत्सधर्मो महान । शब्दाम्भोरुह भास्करः प्रथिततर्क ग्रन्थकारः प्रभा,
चन्द्राख्यो मुनिराज पंडितवरः श्रीकुन्दकुन्दान्वय ।।16।' 7. भाद्रपद सुदि 5, आदिवार, शक सं. 1197 अर्थात् 1275 ई. में प्रभाचन्द्र भट्टारक देव के शिष्य आदियण्ण ने गोमट्टदेव के नित्याभिषेक के लिए चार 'गद्याण' (तत्कालीन प्रचलित स्वर्णमुद्रा) का दान कराया था, जिसमें एक 'होनं' (तत्कालीन मुद्रा) पर एक ‘हाग' (मुद्रा) मासिक ब्याज से एक बल्ल (माप) दूध प्रतिदिन दिया जाना चाहिए। ये सातवें 'प्रभाचन्द्र' हैं।'
8. आठवें 'प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव' ने कोङ्गल्लनरेश अद्दरादित्य द्वारा बनवाये गये चैत्यालय की पूजन हेत तरिगलनि (ग्राम विशेष) की 42 खण्डगभूमि दान कराई थी। ये प्रभाचन्द्र 'उभय सिद्धान्त रत्नाकर' की उपाधि से विभूषित थे।'
9. नौवें 'प्रभाचन्द्र' भट्टारक जिनचन्द्र के शिष्य थे। ये बलात्कारगण दिल्ली-जयपुर पट्ट के आचार्य थे। इनके समय में यह संघ अटेर शाखा और नागौर शाखा में विभाजित हो गया था। इनका समय सं. 1571 से 1580 का है।' ___10. दशवें ‘प्रभाचन्द्र' बालचन्द्र के शिष्य थे। कंवदहल्लि के शिलालेख में उल्लेख है -
आदावनंत वीर्यस्तच्छिष्यो बालचन्द्रमुनिमुख्य -
स्तत्सुनुर्जितमदनः सिद्धान्ताम्भोनिधिः प्रभाचन्द्रः ।।2।।' 11. ग्यारहवें 'प्रभाचन्द्र' श्री ज्ञानभूषण के शिष्य थे। त्रेपन क्रिया विनती में लिखा है -
प्रभाचन्द्रसूरि एम कहेए जिनसासननी सिनगार।
ए वीनती भणे सुणे तेह घरि-जय-जयकार ॥७॥" इनका समय सं. 1500 के लगभग है।