Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 121
________________ जैन विद्या 24 यदि असत् अर्थ की भी ख्याती होती हो तो आकाशपुष्पादि की भी होनी चाहिए । अतः ऐसी स्थिति में यही मानना उचित है कि विपर्ययज्ञान में विपरीत अर्थ (सीप से विपरीत चाँदी है, रस्सी से विपरीत सर्प है, इत्यादि) की ख्याति होती है । विपर्ययज्ञान का नाम विपरीतार्थख्याति रूप होने के कारण ही विपर्ययज्ञान है । 112 अध्यक्ष, जैनदर्शन विभाग श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, (मानित विश्वविद्यालय), नई दिल्ली-110016 DOO

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