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जैनविद्या 24
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स्मृति का प्रमोष (चोरी) देखा जाता है। उनके अनुसार विपर्ययज्ञान में वस्तुतः दो ज्ञान होते हैं। एक ज्ञान तो सामने स्थित अर्थ का प्रतिभास रूप होता है और दूसरा पूर्वदृष्ट पदार्थ का सादृश्यादि के कारण स्मृतिरूप होता है। जैसे - जब हमें सीप में 'यह चाँदी है (इदम् रजतम्)' - ऐसा ज्ञान होता है तब वहाँ वास्तव में एक ज्ञान नहीं होता है, अपितु दो ज्ञान होते हैं - एक तो यह (इदम्)' पद से प्रकट होनेवाला प्रत्यक्ष ज्ञान और दूसरा 'चाँदी (रजतम्)' पद से प्रकट होनेवाला ज्ञान, जो स्मरण-रूप होता है। वहाँ ज्ञाता पुरुष प्रत्यक्ष और स्मृति - इन दो ज्ञानों में भेद नहीं जान पाता, अतः यह विवेकाख्याति रूप है। अथवा सामने स्थित अर्थ के लिए स्मृति करते हुए भी उसे स्मृति नहीं कहता, स्मृतिप्रमोष है। विपर्ययज्ञान ऐसा विवेकाख्याति या स्मृतिप्रमोष रूप ही होता है। ___ परन्तु प्राभाकारों का उक्त मत भी समीचीन नहीं है, क्योंकि विपर्ययज्ञान में प्रत्यक्ष
और स्मरण - ये दो ज्ञान नहीं होते, अपितु एक ही ज्ञान होता है - विपरीत अर्थ को जाननेरूप। तथा जिसे वे सादृश्यादि के निमित्त से हुआ स्मृतिप्रमोष कह रहे हैं वह वस्तुतः विपरीतार्थख्याति ही है। 7. विपरीतार्थख्यातिवाद - __ जैन और नैयायिक-वैशेषिक कहते हैं कि विपर्ययज्ञान विपरीतार्थख्याति-रूप होता है, क्योंकि उसमें विपरीत अर्थ की ख्याति होती है। अर्थात् सादृश्यादि कुछ कारणों से सीप में उसके विपरीत अर्थ चाँदी का ज्ञान हो जाता है अथवा मरीचिका में उसके विपरीत जल का ज्ञान हो जाता है। अतः विपर्ययज्ञान को विपरीतार्थख्याति-रूप ही मानना चाहिए।
जैनों और नैयायिक-वैशेषिकों का उक्त कथन न्यायसंगत है। विपर्ययज्ञान को विपरीतार्थख्याति-रूप मानने में कोई बाधा नहीं है।
शंका - सीप में चाँदी के विपर्ययज्ञान का आलंबन क्या है? सीप या चाँदी? यदि सीप है तो उसे सतख्याति रूप कहिये और यदि चाँदी है तो उसे असतख्याति रूप कहिये। यह विपरीतार्थख्याति क्या होता है?
समाधान - सीप में चाँदी के विपर्ययज्ञान का आलंबन चाँदी ही है, सीप नहीं; क्योंकि यदि उसका आलंबन सीप होता तो वह विपर्ययज्ञान नहीं कहलाता। परन्तु उसका आलंबन चाँदी होते हुए भी उसे असख्याति-रूप नहीं माना जा सकता क्योंकि