Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 105
________________ 96 जैनविद्या 24 "समर्थनं वा वरं हेतुरूपम्... तदुपयोगात्” । (3.41) इसलिए साध्य की सिद्धि के लिए उदाहरण, उपनय और निगमन के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है। माणिक्यनन्दि ने उदाहरण आदि के प्रयोग की आवश्यकता अथवा उपयोगिता को नकारते हुए लिखा है कि 'उदाहरण' के प्रयोग की आवश्यकता तीन स्थानों पर हो सकती है - साध्य का ज्ञान कराने के लिए, हेतु का अविनाभाव बतलाने के लिए, और व्याप्ति का स्मरण करने के लिए। किन्तु तीनों ही स्थानों पर उदाहरण के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है। पहले, साध्य का ज्ञान कराने के लिए उदाहरण की आवश्यकता इसलिए नहीं है क्योंकि साध्य का ज्ञान साध्य के साथ अविनाभाव रूप निश्चित (यथोक्त या साध्याविनाभावी) हेतु के प्रयोग से ही हो जाता है, अर्थात् साध्य के साथ जिसका अविनाभाव है ऐसे हेतु के द्वारा ही साध्य का बोध हो जाने से उदाहरण की आवश्यकता नहीं रहती है। दूसरे, हेतु का साध्य के साथ अविनाभाव निश्चित करने के लिए भी उदाहरण की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि विपक्ष में बाधक प्रमाण से ही अविनाभाव का निश्चय हो जाता है। अर्थात् अमुक हेतु विपक्ष में सर्वथा असम्भव है, इस प्रकार के बाधक प्रमाण से ही हेतु का अविनाभाव सिद्ध हो जाता है। और तीसरे, व्याप्ति स्मरण के लिए भी उदाहरण के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि व्याप्ति का स्मरण तो 'साध्य के बिना नहीं होनेवाले हेतु' के प्रयोग से ही हो जाता है। इनके अतिरिक्त, साध्य की सिद्धि में उदाहरण का प्रयोग उपयोगी नहीं बल्कि अनुपयोगी है; क्योंकि उपनय और निगमन के बिना यदि केवल उदाहरण का प्रयोग किया जाए तो वह साध्य धर्मवाले धर्मी (पक्ष) में साध्य के सिद्ध करने में सन्देह उत्पन्न करा देता है। अतः कहा जा सकता है कि उदाहरण का प्रयोग साध्य की सिद्धि के लिए अनुपयोगी और संशय का कारण है। ___ माणिक्यनन्दि और प्रभाचन्द्र के अनुसार 'उपनय' और 'निगमन' भी अनुमान के अवयव नहीं हैं; क्योंकि साध्यधर्मी में, साध्य और हेतु का कथन करने से ही संशय दूर हो जाता है, इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि वादकाल में उदाहरण, उपनय और निगमन अनुमान के अवयव नहीं होते हैं। किन्तु, जैसाकि हम ऊपर कह आये हैं कि शास्त्रकाल में उदाहरण, उपनय और निगमन का उपयोग है। यहाँ धातव्य है कि वादकाल के अवयवों - पक्ष और हेतु - के स्वरूप की चर्चा तो ऊपर, अनुमान के घटकों के सन्दर्भ में की जा चुकी है, किन्तु उदाहरण, उपनय और निगमन के स्वरूप की चर्चा नहीं हुई है। अतः यहाँ प्रश्न उठता है कि इनका, उदाहरण आदि का, स्वरूप क्या है? प्रत्युत्तर में, जहाँ पर वादी और

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