Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 114
________________ जैनविद्या 24 105 76. वस्तु के जानने के साथ ही तत्काल होनेवाले फल को साक्षात्फल कहते हैं। जब हम किसी अज्ञात वस्तु को प्रमाण से जानते हैं तब तत्ससम्बन्धी अज्ञान तत्काल दूर हो जाता है। वही अज्ञान की निवृत्ति प्रमाण का साक्षात्फल है। 77. वस्तु के जानने के पश्चात् परम्परा से प्राप्त होनेवाले फल को 'पारम्पर्यफल' कहते हैं। वह हान, उपादान और उपेक्षा के भेद से तीन प्रकार का होता है। वस्तु को जानने के पश्चात् वस्तु के अनिष्ट या अहितकर होने पर उसका परित्याग कर देने को ‘हान' कहते हैं, वस्तु के इष्ट या हितकर होने पर उसका ग्रहण करने को ‘उपादान' कहते हैं, और इष्ट-अनिष्ट नहीं होने पर उदासीन रहने को 'उपेक्षा' कहते हैं। 78. परीक्षामुख, सूत्र 6.11 से 6.50. एसोसियेट प्रोफेसर - दर्शनशास्त्र 18, पुराना रोडवेज वर्कशॉप, सिविल लाइन्स, भरतपुर-321001 (राज.) मो. 09414208003 E-mail- Dr.R.S.Shekhawat@gmail.com DOD

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