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जैनविद्या 24
मार्च 2010
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ख्यातिवाद : प्रमेयकमलमार्तण्ड के प्रकाश में
- डॉ. वीरसागर जैन
'ख्यातिवाद' प्रायः सभी भारतीय दर्शनों का एक प्रमुख विषय है, परन्तु जैन-ग्रन्थों में इसका विस्तृत विवचेन मात्र प्रभाचन्द्राचार्य के प्रमेयकमलमार्तण्ड' एवं 'न्यायकुमुदचन्द्र' में ही देखने को मिलता है। यद्यपि ज्ञानमीमांसा हेतु इस विषय को समझना भी बहुत आवश्यक है, परन्तु वर्तमान में अनेक लोग इस विषय को कठिन प्रतीत होने के कारण छोड़ देते हैं। यहाँ तक कि प्रमेयकमलमार्तण्ड जो विभिन्न विश्वविद्यालयों में निर्धारित पाठ्यग्रन्थ है, के छात्र और अध्यापक भी इस विषय की कठिन होने के कारण उपेक्षा करते देखे जाते हैं। अतः यहाँ प्रस्तुत आलेख द्वारा इसी विषय को सरलतापूर्वक स्पष्ट करने का प्रयत्न किया जा रहा है। आलेख का मुख्य आधार 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' को ही बनाया गया है। आशा है, विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों को भी इससे लाभ होगा।
कहा जा चुका है कि 'ख्यातिवाद' ज्ञानमीमांसा से सम्बन्धित विषय है। ज्ञान दो प्रकार का है - सम्यग्ज्ञान और मिथ्याज्ञान । इनमें से ख्यातिवाद' का सम्बन्ध मिथ्याज्ञान से है। मिथ्याज्ञान भी तीन प्रकार का है - संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय । इनमें से भी ख्यातिवाद का सम्बन्ध मात्र विपर्ययज्ञान से है। विपरीत एक कोटि का निश्चय विपर्ययज्ञान कहलाता है। जैसे रस्सी में सर्प का अथवा सीप में चाँदी का ज्ञान होना