Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 91
________________ जैनविद्या 24 (1) अविरुद्धव्याप्योपलब्धि हेतु - शब्द परिणामी' है (प्रतिज्ञा); क्योंकि वह कृतक" है (हेतु), जो कृतक होता है वह परिणामी देखा जाता है, जैसे - घट (अन्वय दृष्टान्त), शब्द कृतक है (उपनयन), इसलिए वह परिणामी है (निगमन)। जो परिणामी नहीं होता है वह कृतक भी नहीं देखा जाता है, जैसे - बन्ध्यापुत्र (व्यतिरेक दृष्टान्त), शब्द कृतक है (उपनय), अतः वह परिणामी है (निगमन)। यह अविरुद्धव्याप्योपलब्धि हेतु का उदाहरण है। इस उदाहरण में ‘कृतकत्व' हेतु है और ‘परिणामित्व' साध्य। कृतकत्व और परिणामित्व में व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध पाया जाता है (जो अल्प देश में रहे उसे 'व्याप्य' कहते हैं और जो बहुत देश में रहे उसे 'व्यापक' । कृतकत्व केवल पुद्गल द्रव्य में रहने के कारण व्याप्य है और परिणामित्व आकाश आदि सभी द्रव्यों में पाये जाने के कारण व्यापक)। इसलिए कृतकत्व रूप व्याप्य से परिणामित्व रूप व्यापक की सिद्धि की गयी है। इस अनुमान में कृतकत्व रूप हेतु विधि-साधक (भावरूप साध्य की सिद्धि करनेवाला), व्याप्य और अविरुद्ध होने के कारण इसे अविरुद्धव्याप्योपलब्धि हेतु का उदाहरण माना गया है। अतः कहा जा सकता है कि विधि-साधक, अविरुद्ध और व्याप्य रूप उपलब्ध हेतु को 'अविरुद्धव्याप्योपलब्धि हेतु' कहते हैं। अन्य शब्दों में, साध्य के व्याप्य का पाया जाना 'अविरुद्धव्याप्योपलब्धि हेतु' कहलाता है। (2) अविरुद्धकार्योपलब्धि हेतु - अविरुद्धकार्योपलब्धि हेतु का उदाहरण दिया गया है कि - "इस देही (शरीरधारक प्राणी) में बुद्धि है; क्योंकि इसमें बुद्धि के अविरोधी कार्य, वचनादि, पाये जाते हैं।"13 इस उदाहरण में 'बुद्धि' साध्य है जो कि कारणरूप है और 'वचनादि' हेतु है जो कार्यरूप है। इस अनुमान में हेतु विधि-साधक एवं साध्य का अविरोधी कार्य है। इसलिए इसे अविरुद्धकार्योपलब्धि हेतु का उदाहरण माना गया है। इस उदाहरण के आधार पर अविरुद्धकार्योपलब्धि हेतु का लक्षण किया जा सकता है, साध्य के अविरोधी कार्य का पाया जाना, अर्थात् विधि-साधक अविरुद्ध कार्यरूप उपलब्ध हेतु को 'अविरुद्धकार्योपलब्धि हेतु' कहते हैं। (3) अविरुद्धकारणोपलब्धि हेतु - और इसके विपरीत विधि-साधक अविरुद्ध कारणरूप उपलब्ध हेतु को 'अविरुद्धकारणोपलब्धि हेतु' कहते हैं। ‘परीक्षामुख' में इसका उदाहरण दिया गया है कि “यहाँ छाया है; क्योंकि छाया का अविरोधी कारण छत्र पाया जाता है।"14 यहाँ 'छाया' साध्य है जो कार्य-रूप है और 'छत्र' हेतु है जो कारण-रूप है। इस अनुमान में विधि-साधक और साध्य का अविरोधी कारण-रूप हेतु

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