Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 89
________________ जैनविद्या 24 - 195 अर्थात् साधन से साध्य के ज्ञान को 'अनुमान' कहते हैं। परीक्षामुख के इस सूत्र की व्याख्या करते हुए प्रभाचन्द्र ने प्रमेयकमलमार्त्तण्ड में अनुमान का लक्षण किया है 'जो साध्य के अभाव में नियम से नहीं होता है ऐसे 'निश्चित साधन' से शक्य, अभिप्रेत और असिद्ध लक्षणवाले साध्य का जो ज्ञान होता है उसे 'अनुमान' कहते हैं।' ध्यातव्य है - प्रभाचन्द्र के अनुसार, साधन से होनेवाले साध्य के ज्ञान का अनुमान रूप होने के लिए यह आवश्यक है कि साधन में साध्य - अभाव के साथ साधन अभाव की निश्चितता हो और साध्य में शक्य, अभिप्रेत और असिद्ध रूप तीन विशेषण हों । साधन और साध्य के इन विशेषणों के अभाव में उनके द्वारा होनेवाले ज्ञान में अनुमानपना सम्भव नहीं होगा, अर्थात् वह ज्ञान अनुमानरूप नहीं होगा । अन्य शब्दों में, वह अनुमान नहीं होगा । किन्तु यहाँ प्रश्न उठता है कि साधन और साध्य का स्वरूप क्या है ? अथवा यूँ कहें कि अनुमान की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए साधन और साध्य की अवधारणाओं का स्पष्टीकरण आवश्यक है अर्थात् यदि यहाँ साधन और साध्य की चर्चा की जाए तो अनुमान की अवधारणा अधिक स्पष्ट होगी। दूसरे, ध्यातव्य है कि साधन, साध्य और पक्ष या धर्मी अनुमान के मौलिक घटक हैं। अतः यहाँ इनकी चर्चा अपेक्षित है । 1.2. अनुमान के घटक 1.2.1.1. साधन/ हेतु - माणिक्यनन्दि ने (परीक्षामुख में) साधन अर्थात् हेतु का लक्षण किया है 'साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतु: ।' 3.10 (3.15 ) अर्थात् साध्य के साथ जिसका अविनाभाव निश्चित हो उसे 'साधन' अर्थात् 'हेतु' कहते हैं। प्रभाचन्द्र ने माणिक्यनन्दि का समर्थन करते हुए हेतु का लक्षण किया है 'साध्याविनाभावित्व' और 'अन्यथानुपपन्नत्व'" । अर्थात् साध्य के साथ अविनाभाव नियम से हेतु का वर्त्तना और साध्य के बिना हेतु का नियम से नहीं होने का निश्चय, अर्थात् साध्याभाव में साधनाभाव का निश्चय । यह हेतु का असाधारण स्वभाव है (असाधारण स्वभाव ही किसी विषय का लक्षण होता है) और अनुमान की अनिवार्य शर्त। प्रभाचन्द्र के अनुसार हेतु के लिए यह आवश्यक है कि वह साध्य का गमक हो । और कोई हेतु साध्य का गमक तब हो सकता है जब वह साध्याविनाभावित्व और अन्यथानुपपन्नत्व से युक्त हो, अर्थात् हेतु साध्याविनाभावित्व और अन्यथानुपपन्नत्व से युक्त हो, अन्य शब्दों में हेतुसाध्याविनाभावित्व और अन्यथानुपपन्नत्व से युक्त होकर ही साध्य को सिद्ध कर सकता है, अन्यथा नहीं । अतः यही (साध्याविनाभावित्व) हेतु का प्रधान लक्षण है । 80

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