Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 96
________________ जैनविद्या 24 'अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धि हेतु' कहते हैं, जैसे - “एक मुहूर्त के पश्चात् रोहिणी नक्षत्र का उदय नहीं होगा; क्योंकि अभी कृत्तिका नक्षत्र का उदय नहीं हुआ।"30। इस अनुमान में साध्य पदार्थ, रोहिणी नक्षत्र का उदय, का पूर्वचर कृत्तिका नक्षत्र का उदय है, और उसके अभाव से रोहिणी नक्षत्र के उदय के अभाव को सिद्ध किया गया है। अतः यह हेतु अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धि हेतु है। (6) अविरुद्धोत्तरचरानुपलब्धि हेतु - इसके विपरीत साध्य पदार्थ के उत्तरचर की अनुपलब्धि को ‘अविरुद्धोत्तरचरानुपलब्धि हेतु' कहते हैं, जैसे - “एक मुहूर्त से पहले भरणी नक्षत्र का उदय नहीं हुआ है; क्योंकि अभी कृत्तिका नक्षत्र का उदय नहीं हुआ है"। इस अनुमान में साध्य पदार्थ, भरणी नक्षत्र का उदय, का उत्तरचर है कृत्तिका नक्षत्र का उदय और उसके - कृत्तिका नक्षत्र के उदय के - अभाव से भरणी नक्षत्र के उदय के अभाव को सिद्ध किया गया है। अतः यह हेतु अविरुद्धोत्तरचरानुपलब्धि हेतु है। - (7) अविरुद्धसहचरानुपलब्धि हेतु - साध्य पदार्थ के सहचर की अनुपलब्धि को ‘अविरुद्धसहचरानुपलब्धि हेतु' कहते हैं, जैसे - "इस समतुला (= समान या ठीक तोलनेवाली तराजू) में 'उन्नाम' (= एक ओर नीचापन) नहीं है; क्योंकि इसमें 'नाम' (= दूसरी ओर नीचापन) नहीं पाया जाता है"32। इस उदाहरण में तराजू में 'उन्नाम का अभाव' साध्य है और 'नाम की अनुपलब्धि' हेतु । 'नाम' की अनुपलब्धि से 'उन्नाम' की अनुपलब्धि की सिद्धि की गई है, और 'नाम' उन्नाम का अविरोधी सहचर है। अतः यह अविरुद्धसहचरानुपलब्धि हेतु है। ___ 2. विरुद्धानुपलब्धि हेतु - अनुपलब्धि हेतु का दूसरा भेद है - विरुद्धानुपलब्धि। विरुद्धानुपलब्धि हेतु विधि-साधक है, अर्थात् सद्भाव को सिद्ध करनेवाला है। ध्यातव्य है, यद्यपि विरुद्धानुपलब्धि हेतु अनुपलब्धि अथवा अभावरूप होता है किन्तु, फिर भी, अपने साध्य के सदभाव को सिद्ध करता है। विधिरूप साध्य के रहने पर विरुद्धानुपलब्धि हेतु के तीन भेद हैं - (1) विरुद्धकार्यानुपलब्धि हेतु, (2) विरुद्धकारणानुपलब्धि हेतु और (3) विरुद्धस्वभावानुपलब्धि हेतु। (1) विरुद्धकार्यानुपलब्धि हेतु - साध्य से विरुद्ध पदार्थ के कार्य का नहीं पाया जाना 'विरुद्धकार्यानुपलब्धि हेतु' कहलाता है, जैसे - "इस प्राणी में व्याधि-विशेष है; क्योंकि इसमें रोगरहित चेष्टा, अर्थात् निरोग के समान चेष्टा नहीं पाई जाती है।"34 इस

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