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जैनविद्या 24
अनुमान का हेतु 'धूम' सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास है; क्योंकि मुग्ध बुद्धि पुरुष को अग्नि और धूम के सम्बन्ध का निश्चय नहीं होने के कारण चूल्हे से तत्काल उतारे हुए दालभात आदि के पात्र से निकलनेवाले वाष्प (भाप) को देखकर अग्नि का सन्देह हो सकता है। 2. विरुद्ध हेत्वाभास विरुद्ध हेत्वाभास का लक्षण किया गया है -
“विपरीतनिश्चिताविनाभावो विरुद्धोऽपरिणामी शब्दः कृतकत्वात्।"6.29 (5.29)
अर्थात् साध्य से विपरीत पदार्थ के साथ जिसका अविनाभाव निश्चित हो, उसे 'विरुद्ध हेत्वाभास' कहते हैं, जैसे शब्द अपरिणामी है; क्योंकि वह कृतक है। इस अनुमान में हेतु ‘कृतकत्व' साध्य ‘अपरिणामी' के विरोधी परिणामी' के साथ व्याप्त है अर्थात् कृतकत्व रूप हेतु का अपरिणामी रूप साध्य के विपरीत पदार्थ ‘परिणामी' के साथ व्याप्त है। इसलिए यह विरुद्ध हेत्वाभास है। 3. अनैकान्तिक हेत्वाभास परीक्षामुख में अनैकान्तिक (व्यभिचारी) हेत्वाभास का लक्षण किया गया है -
“विपक्षेऽप्यविरुद्धवृत्तिरनैकान्तिकः।" 6.30 (5.30) अर्थात्, जिसका विपक्ष में रहना भी अविरुद्ध है, अन्य शब्दों में, जो हेतु पक्षसपक्ष के समान विपक्ष में भी बिना किसी विरोध के रहता है वह अनैकान्तिक हेत्वाभास' . कहलाता है। इसके दो भेद हैं -
(1) निश्चितविपक्षवृत्ति और (2) शंकितविपक्षवृत्ति ।
(1) निश्चितविपक्षवृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास - जो हेतु निश्चितरूप से, पक्ष-सपक्ष के समान, विपक्ष में भी रहता है उसे 'निश्चितविपक्षवृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास' कहते हैं, जैसे - शब्द अनित्य है; क्योंकि वह प्रमेय (प्रमाण का विषय) है। जो प्रमेय होता वह अनित्य होता है जैसे घट। इस अनुमान में हेतु प्रमेयत्व' पक्ष 'शब्द' और सपक्ष ‘घट' में रहता हुआ अनित्य के विपक्ष नित्य आकाश में भी रहता है। अतः यह हेतु निश्चितविपक्षवृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास है।
(2) शंकितविपक्षवृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास - जिसका विपक्ष में रहना संशयास्पद हो वह 'शंकितविपक्षवृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास' है, जैसे - सर्वज्ञ नहीं