Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 95
________________ 86 जैनविद्या 24 (1) अविरुद्धस्वभावानुपलब्धि हेतु - का उदाहरण दिया गया है - "इस भूतल पर घट नहीं है; क्योंकि उपलब्धि योग्य स्वभाव के होने पर भी वह अनुपलब्धि है"26 | इस उदाहरण में 'घटाभाव' साध्य है और 'घट के उपलब्धि योग्य स्वभाव के होने पर भी अनुपलब्ध होना' हेतु। इस अनुमान में घट के स्वभाव की अनुपलब्धि से घट के नहीं होने की सिद्धि की गई है। इसलिए यह अविरुद्धस्वभावानुपलब्धि हेतु का उदाहरण है। इस उदाहरण के आधार पर इसका लक्षण किया जा सकता है, साध्य पदार्थ के स्वभाव की अनुपलब्धि अथवा प्रतिषेध साधक, अविरुद्ध तथा स्वभाव रूप अनुपलब्ध हेतु को ‘अविरुद्धस्वभावानुपलब्धि हेतु' कहते हैं। (2) अविरुद्धव्यापकानुपलब्धि हेतु - साध्य पदार्थ के व्यापक के अभाव को 'अविरुद्धव्यापकानुपलब्धि हेतु' कहते हैं, जैसे - “यहाँ पर शीशम नहीं है, क्योंकि यहाँ वृक्ष की अनुपलब्धि है"। इस अनुमान में 'शीशम का अभाव' साध्य है और 'वृक्ष की अनुपलब्धि' हेतु। 'शीशमत्व' व्याप्य है और 'वृक्षत्व' व्यापक। जब व्यापक का अभाव होता है तब व्याप्य का अभाव अनिवार्य रूप से होता है। यहाँ अनुपलब्ध रूप व्यापक को हेतु बनाया गया है। इसलिए यह अविरुद्धव्यापकानुपलब्धि हेतु है। (3) अविरुद्धकार्यानुपलब्धि हेतु - इसका उदाहरण है - “यहाँ पर अप्रतिबद्ध सामर्थ्यवाली अग्नि नहीं है; क्योंकि यहाँ धूम का अभाव है"28 । इस अनुमान में 'अप्रतिबद्ध सामर्थ्यवाली अग्नि का अभाव' साध्य है और 'धूम का अभाव' हेतु। अप्रतिबद्ध सामर्थ्यवाली अग्नि 'कारण' है और धूम 'कार्य' । 'अप्रतिबद्ध सामर्थ्य' से यहाँ अभिप्राय है अपने कार्य करने में समर्थ । इस अनुमान में साध्य की सिद्धि साध्य पदार्थ ‘अग्नि' के अविरोधी कार्य 'धूम' के अभाव से की गई है। अतः यह हेतु अविरुद्धकार्यानुपलब्धि हेतु है। इसका लक्षण हम इस प्रकार कर सकते हैं कि साध्य पदार्थ के कार्य की अनुपलब्धि को, अर्थात् प्रतिषेध साधक, अविरुद्ध और कार्यरूप अनुपलब्ध हेतु को 'अविरुद्धकार्यानुपलब्धि हेतु' कहते हैं। (4) अविरुद्धकारणानुपलब्धि हेतु - इसके विपरीत साध्य पदार्थ के कारण की अनुपलब्धि को ‘अविरुद्धकारणानुपलब्धि हेतु' कहते हैं, जैसे - “यहाँ धूम नहीं है; क्योंकि यहाँ अग्नि नहीं है"29। इस अनुमान में 'धूमाभाव' साध्य है और ‘अग्न्याभाव' हेत् । धूम 'कार्य' है और 'अग्नि' कारण। यहाँ धूम के अविरुद्ध अग्नि की अनुपलब्धि रूप हेतु से धूम के अभाव की सिद्धि की गई है। इसलिए यह हेतु अविरुद्धकारणानुपलब्धि हेतु है। (5) अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धि हेतु - प्रतिषेध साधक, अविरुद्ध, और पूर्वचर का अनुपलब्ध हेतु को अथवा साध्य पदार्थ के पूर्वचर की अनुपलब्धि को

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