Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 94
________________ जैनविद्या 24 'विरुद्धपूर्वचरोपलब्धि हेतु' कहलाता है। उदाहरण के रूप में - एक मुहूर्त के पश्चात् रोहिणी नक्षत्र का उदय नहीं होगा, क्योंकि अभी रेवती नक्षत्र का उदय हो रहा है।22 यहाँ पर रोहिणी के उदय का विरोधी अश्विनी का उदय है, उसका पूर्वचर रेवती नक्षत्र है। अतः रेवती का उदय रोहिणी के विरुद्ध पूर्वचर कहलाता है। (5) विरुद्धउत्तरचरोपलब्धि हेतु - प्रतिषेध्य साध्य पदार्थ के विरुद्ध पदार्थ के उत्तरचर का पाया जाना 'विरुद्धउत्तरचरोपलब्धि हेतु' कहलाता है। परीक्षामुख' में इसका उदाहरण दिया गया है कि एक मुहूर्त पहले भरणी का उदय नहीं हुआ है; क्योंकि पुष्य नक्षत्र का उदय हो रहा है। यहाँ भरणी के उदय का विरोधी पुनर्वसु नक्षत्र का उदय है और उसका उत्तरचर पुष्य नक्षत्र का उदय है। अतः पुष्य नक्षत्र का उदय भरणी नक्षत्र के उदय का विरुद्ध उत्तरचर होने के कारण यह विरुद्धोत्तरचरोपलब्धि हेतु' का उदाहरण है। (6) विरुद्धसहचरोपलब्धि हेतु - परीक्षामुख में विरुद्धसहचरोपलब्धि हेतु का उदाहरण दिया गया है - "इस भित्ति (दीवार) में उस ओर के भाग (परभाग) का अभाव नहीं है; क्योंकि इस ओर का भाग (अर्वाग्भाग) दिखाई दे रहा है"24। इस उदाहरण में 'दीवार के परभाग का अभाव' साध्य पदार्थ है और साध्य पदार्थ का विरोधी पदार्थ है 'दीवार के परभाग का सद्भाव' तथा साध्य पदार्थ के विरोधी पदार्थ - दीवार के परभाग का सद्भाव - का सहचर है 'दीवार के अर्वाग्भाग का सद्भाव' । अतः यह विरुद्धसहचरोपलब्धि हेतु का उदाहरण है। इससे स्पष्ट है कि प्रतिषेध साध्य पदार्थ के विरोधी पदार्थ के सहचर के सद्भाव को 'विरुद्धसहचरोपलब्धि हेतु' कहते हैं। अनुलब्धि हेतु - हेतु का दूसरा भेद है - ‘अनुपलब्धि हेतु' । अनुपलब्धि हेतु भी उपलब्धि हेतु के समान दो प्रकार का है - 1. अविरुद्ध अनुपलब्धि हेतु और 2. विरुद्ध अनुपलब्धि हेतु । 1. अविरुद्ध अनुपलब्धि हेतु - अविरुद्ध अनुपलब्धि हेतु प्रतिषेध-साधक होता है, अर्थात् अभाव को सिद्ध करनेवाला होता है। इसके सात भेद हैं - (1) अविरुद्धस्वभावानुपलब्धि हेतु, (2) अविरुद्धव्यापकानुपलब्धि हेतु, (3) अविरुद्धकार्यानुपलब्धि हेतु, (4) अविरुद्धकारणानुपलब्धि हेतु, (5) अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धि हेतु, (6) अविरुद्धोत्तरचरानुपलब्धि हेतु और (7) अविरुद्धसहचरानुपलब्धि हेतु।25 परीक्षामुख एवं प्रमेयकमलमार्तण्ड में अविरुद्धोपलब्धि हेतु के भेदों की भाँति, अविरुद्ध अनुपलब्धि हेतु के भेदों के भी लक्षण नहीं दिये गये हैं। उनके मात्र उदाहरण दिये गये हैं जो निम्नलिखित रूप से हैं -

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