Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 65
________________ जैन विद्या 24 राजा मुंज, राजा भोज तथा राजा जयसिंह के शासन काल में इन्होंने विशाल ग्रन्थों की रचना की थी। उन ग्रन्थों में ग्यारह ग्रन्थ टीका - व्याख्या के ग्रन्थ हैं, वे एक एक उत्कृष्ट ग्रन्थ हैं। यद्यपि ये टीका - व्याख्या सहित ग्रन्थ हैं पर उन ग्रन्थों की मूल से कहीं उच्च विवृतियाँ हैं, अपनेआप में मूल ग्रन्थ से ज्यादा विशिष्टता प्राप्त हैं और ये सब मूल ग्रन्थों की अपेक्षा स्वयं में एक सर्वोच्च कोटि के ग्रन्थ बन गये हैं । 565 1. प्रभाचन्द्राचार्य की सर्वप्रथम श्रेष्ठ कृति 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' है जो धारा- नरेश भोजराज की राजधानी धारानगरी में पूर्ण हुई थी । यह माणिक्यनन्दि रचित 'परीक्षामुख' की विस्तृत - विशाल व्याख्या है। इसकी समाप्ति पर अंत में जो प्रशस्ति वाक्य है उससे प्रभाचन्द्राचार्य, और भोजराज के शासनकाल की सुनिश्चित तिथियों का स्पष्ट ज्ञान होता है - " श्री भोजराजदेव - राज्ये श्रीमद्धारानिवासिनाश्री प्रभाचन्द्रपण्डितेन निखिल - प्रमाण- प्रमेयं स्वरूपोद्योत परीक्षामुख पदमिदं विवृतमिति । " " श्री धाराधिप भोजराजमुकुट प्रोतारम् रश्मिच्छटा-छायास्थेयात्पण्डित पुण्डरीक तरणि श्रीमान्प्रभाचन्द्रमा । श्रवणबेलगोला में प्रभाचन्द्र के चरण-चिह्न हैं जो राजा भोज द्वारा पूजे जाते थे। 20 2. इनकी दूसरी उच्च कोटि की कृति भट्ट अकलंकदेव द्वारा विरचित 'लघीयस्त्रय' (78 कारिकाओं) की 'न्यायकुमुदचन्द्र' नामक विशाल विस्तृत व्याख्या विवृत्ति है । न्यायकुमुदचन्द्र की एक प्रति में निम्न प्रशस्ति वाक्य उपलब्ध होते हैं- “श्री जयसिंहदेव राज्ये श्रीमद्धारानिवासना परापरपरमेष्ठि प्रणामोपार्जितामल पुण्य निराकृत निखिलमकलङ्केन श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेन न्यायकुमुदचन्द्रो लघीयस्त्रयालंकारः कृतः इति मंगलम् ” । यह जयसिंहदेव राजा भोजदेव के उत्तराधिकारी धारा-न - नरेश थे । यद्यपि राजा भोज का उत्तराधिकारी उनके पुत्र वत्सराज को होना चाहिए था । पर किसी कारण विशेष से इतिहास में और कहीं भी वत्सराज का धारा- नरेश के रूप में उल्लेख नहीं मिलता, धारानरेश भोजराज के उत्तराधिकारी जयसिंह और उदयादित्य हुए । माध्यान्तर तथा पढेरा के दान-पत्र में सं. 1112 और 1116 में धारा के नरेश और भोज के उत्तराधिकारी होने का स्पष्ट उल्लेख है पर जैन साहित्य में जयसिंह और उदयादित्य का कहीं भी कोई भी उल्लेख नहीं मिलता है ।

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