________________
जैनविद्या 24
मार्च 2010
-
69
आचार्य प्रभाचन्द्र के ग्रन्थों में 'तर्क प्रमाण' की अवधारणा
डॉ. (सुश्री) राजकुमारी जैन
आचार्य प्रभाचन्द्र के ग्रन्थों में 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' और 'न्यायकुमुदचन्द्र' में 'तर्क प्रमाण' का बहुत विशद विवेचन किया गया है। दो वस्तुओं के मध्य विद्यमान सार्वभौमिक और त्रैकालिक सम्बन्धों को 'व्याप्ति सम्बन्ध' कहा जाता है तथा व्यक्ति को इस सम्बन्ध का ज्ञान 'तर्क प्रमाण' द्वारा होता है। अनुमान मानव के ज्ञानार्जन का एक महत्वपूर्ण साधन है तथा इसकी उत्पत्ति व्याप्ति सम्बन्ध के ज्ञानपूर्वक होती है । जिस व्यक्ति ने पूर्व में हेतु और साध्य के मध्य व्याप्ति सम्बन्ध का ज्ञान प्राप्त किया है वही व्यक्ति हेतु का प्रत्यक्ष होने पर व्याप्ति सम्बन्ध के स्मरणपूर्वक साध्य का अनुमान कर सकता है। जैसे जब कोई व्यक्ति किसी स्थान पर धुआँ उठती हुई देखता है तो उसे यह स्मृति होती है कि धुआँ वहीं होता है जहाँ आग भी होती है, आग का अभाव होने पर धुआँ का होना असम्भव है। इसके उपरान्त उसे उस स्थान पर आग का अनुमान ज्ञान होता है । इस अनुमान में धुआँ हेतु ( साधन या लिंग) है, क्योंकि इसके द्वारा यहाँ आग को सिद्ध किया जा रहा है तथा आग साध्य है। धुआँ का आग के साथ अविनाभाव सम्बन्ध अर्थात् आग के नहीं होने पर धुआँ का सद्भाव नहीं ही होना धुआँ का आग के साथ व्याप्ति सम्बन्ध है । धुआँ यहाँ व्याप्य है, क्योंकि यह आग के सद्भाव में ही उपलब्ध होती है, उसके अभाव में कभी उपलब्ध नहीं होती तथा आग व्यापक है