Book Title: Jain Vidya 24
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 82
________________ जैनविद्या 24 कारण रोगों की उत्पत्ति तथा विभिन्न दवाओं के प्रयोग और रोगों की समाप्ति के मध्य विद्यमान -कार्य नियमों का ज्ञान 'शब्द प्रमाण' से प्राप्त करता है । इस ज्ञान के आधार पर टेस्ट (जाँच) के द्वारा रोगी में रोग विशेष के जीवाणुओं के सद्भाव को सुनिश्चित करके उसके रोग का अनुमान करता है तथा इसके अनुसार वह उसे रोग की समाप्ति हेतु दवा देता है। व्याप्ति सम्बन्ध के ज्ञान में शब्दादि प्रमाणों की इस भूमिका को दृष्टि में रखते हुए माणिक्यनंदी कहते हैं - 'साधन के सद्भाव में साध्य की उपलब्धि और साध्य के अभाव में साधन की अनुपलब्धि के निमित्त से होनेवाले व्याप्ति सम्बन्ध के ज्ञान को ऊह (तर्क) कहा जाता है ।" इसकी व्याख्या करते हुए प्रभाचन्द्र कहते हैं - 'व्यक्ति को व्याप्ति सम्बन्ध का ज्ञान मात्र हेतु और साध्य के अन्वयव्यतिरेकी दृष्टान्तों के पुनःपुनः दर्शन से नहीं होता बल्कि उसे यह ज्ञान उसके तर्कज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम के अनुसार एकबार या अनेकबार हेतु के होने पर साध्य की उपलब्धि और साध्य का अभाव होने पर हेतु की अनुपलब्धि के ज्ञानपूर्वक होता है । इस उपलब्धि और अनुपलब्धि के निमित्त से होनेवाला व्याप्ति सम्बन्ध का ज्ञान तर्क प्रमाण है । यह परिभाषा अव्याप्ति दोष से रहित है, क्योंकि अतीन्द्रिय साधन और साध्य में विद्यमान अन्वयव्यतिरेक का ज्ञान शब्द प्रमाण और अनुमान से भी होता है तथा तर्क प्रमाण की यह परिभाषा इन प्रमाणों से होनेवाले ज्ञान को भी अपने में समाहित करती है । उदाहरण के लिए - जब व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के सुखी जीवन को देखकर उसके द्वारा पूर्व में किये गये पुण्यार्जन का अनुमान करता है तो इस अनुमान को सम्भव बनानेवाले व्याप्ति सम्बन्ध का ज्ञान 'शुभः पुण्यस्य' इस आप्त वाक्य द्वारा प्राप्त होता है । कर्म सिद्धान्त का ज्ञान व्यक्ति को स्वयं के इन्द्रिय प्रत्यक्ष से होनेवाला ज्ञान न होकर अतीन्द्रिय ज्ञान है तथा सामान्य मानव इसे शब्द प्रमाण द्वारा जानता है । इसी प्रकार जब सूर्य के स्थान - परिवर्तन को देखकर उसकी गमनशक्ति का अनुमान किया जाता है तो इस अनुमान में प्रयुक्त सूर्य की गमनशक्ति के सद्भावरूप साध्य और उसके स्थान परिवर्तन - रूप साधन में व्याप्ति सम्बन्ध होने का ज्ञान अनुमान से होता है । इस प्रकार मानव को साधन के होने पर साध्य के भी सद्भाव और साध्य का अभाव होने पर साधन का भी अभाव रूप अन्वयव्यतिरेकी दृष्टान्तों की प्राप्ति मात्र प्रत्यक्ष से ही नहीं, अनुमान और शब्द प्रमाण से भी प्राप्त होती है तथा इस सामग्री पर ऊहापोहात्मक चिन्तन द्वारा होनेवाला व्याप्ति सम्बन्ध का ज्ञान 'तर्क प्रमाण' है। ' 10 133 73

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122