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जैनविद्या 24
न्याय दर्शन का मत तर्क की अप्रामाणिकता तथा तर्कसहकृत प्रत्यक्ष व्याप्तिज्ञान का साधन
न्याय दर्शन के अनुसार तर्क यथार्थ ज्ञान न होकर मिथ्याज्ञान है। इसके द्वारा व्यक्ति को व्याप्ति सम्बन्ध का ज्ञान नहीं होता; बल्कि व्याप्ति सम्बन्ध का ज्ञान हेतु और साध्य के अन्वयव्यतिरेकी दृष्टान्तों के भूयोदर्शन या पुनः पुनः प्रत्यक्ष द्वारा ही होता है। निश्चित रूप से एक परीक्षक व्यक्ति को जब किसी घटना के पीछे कार्य कररहे कारणकार्य नियमों आदि को जानने की जिज्ञासा होती है तो वह अन्वेषणात्मक विधि से उन नियमों का ज्ञान प्राप्त करता है। तर्क इस अन्वेषणात्मक विधि का एक चरण मात्र है जो स्वयं अविज्ञात तत्त्व के प्रति निर्णय-स्वरूप न होकर निर्णय का साधन है।" यह सम्भावना-स्वरूप होता है तथा इसका आकार ‘यह होना चाहिये' रूप होता है। इस प्रकार इसमें निश्चयात्मकता का अभाव होने के कारण यह अप्रमाण है। व्याप्ति सम्बन्ध के ज्ञान की प्रक्रिया में तर्क विभिन्न सम्भावनाओं को उपस्थित करके अनुसन्धान हेतु निर्देश देता है तथा उसे निर्देश की दिशा में खोज करतेहुए जब व्यक्ति अनेक
अन्वयव्यतिरेकी दृष्टान्तों का प्रत्यक्ष करता है तो उन प्रत्यक्षों द्वारा उसे व्याप्ति सम्बन्ध ज्ञात होता है। तर्क ज्ञानार्जन की इस प्रक्रिया में प्रत्यक्ष का सहायक मात्र ही है लेकिन इस क्षेत्र में वह स्वयं प्रमाण नहीं है।
तर्क प्रत्यक्ष का सहायक होने के साथ ही साथ उसका अनुग्राहक भी है क्योंकि यह प्रत्यक्ष द्वारा जाने गये व्याप्ति सम्बन्ध का परीक्षण करके उसकी सत्यता को सुनिश्चित करता है। जैसे - अनेक अन्वयव्यतिरेकी दृष्टान्तों के प्रत्यक्षपूर्वक जब व्यक्ति धुआँ
और आग के मध्य व्याप्ति सम्बन्ध का निश्चय करता है तो वह तर्क द्वारा उसकी परीक्षा करके उसकी सत्यता को सुनिश्चित करता है। वह यह विचार करता है कि हम यह मान लेते हैं कि धुआँ और आग के मध्य व्याप्ति सम्बन्ध नहीं है तथा धुआँ आग के बिना भी मिल सकती है। अपनी इस स्थापना का वह विभिन्न विकल्पों को सामने रखकर विचार करता है। वह धुआँ का कारण यह हो सकता है, यह हो सकता है ....
आदि रूप से विभिन्न सम्भावनाओं को उपस्थित करके उनकी परीक्षा करता है तथा किसी भी सम्भावना के प्रमाणों से सिद्ध नहीं होने पर वह इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि यह स्थापना असत्य है कि धुआँ का कारण आग के अतिरिक्त अन्य कोई पदार्थ है। इसलिये भूयो दर्शन के द्वारा धुआँ और आग के मध्य जो व्याप्ति सम्बन्ध का ज्ञान हुआ है वही सत्य है। इस प्रकार तर्क प्रत्यक्ष के विषय का विवेचन करके उसका